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(छठवा
हृदयहारिणी।



मीरजाफ़रखां सूबेदार बनाए जायंगे, आप और आपके मित्रों की जो कुछ स्थावर संपत्तियां सिराजुद्दौला या इसके पहिले के जालिम सूबेदारों ने ज़बर्दस्ती छीन ली हैं, उन्हें लौटा देने के लिए खां साहब ने पक्का एकरारनामा कंपनी को लिख दिया है।

"आपके कृपापत्र पाने और आपसे मिलने की आशा बनी रही।

आपका सञ्चा

क्लाइव।"

इस पत्र के पढ़ने से उन सभों के मुख पर प्रसन्नता छा गई और नरेन्द्रसिंह ने गंभीरता पूर्वक कहा,-

"यदि आज दिन भारत की इतनी दुर्गति न हुई होती, तो आज एक विदेशी मित्र के सामने सहायता के लिये हाथ न फैलाना पड़ता। मैं जहां तक अनुमान करता हूं, एक न एक दिन ये विलायती सौदागर सारे भारतवर्ष में अपना झंडा फहरावेंगे और तब ये लोग यहांवालों के साथ कैसा बर्ताव करेंगे, इसे ईश्वर ही जाने, पर इस समय तो ये लोग अत्याचारी मुसलमानों के जुल्म से यहांवालों को बहुत ही बचा रहे हैं, यह थोड़े आनन्द की बात नहीं है।"

माधवसिंह ने कहा,-" यद्यपि जिस भांति कंपनीवाले इस देश में अपना पैर जमाते जाते हैं, आपके कथनानुसार किसी न किसी दिन ये अवश्य भारत के राजा बन बैठेंगे और यहांवाले फिर भी पराधीन ही रहेंगे, किन्तु एक अत्याचारी राजा की प्रजा बनने की अपेक्षा एक न्यायी राजा का दासानुदास बनना कड़ोर गुना अच्छा है, क्यों कि इस बात के लिये यह भारत अंग्रेज़ों का सदा रिनियां बना रहेगा कि इन्होंने अत्याचारियों के हाथ से यहांवालों की जान बचाई। यदि ऐसे अवसर पर अंग्रेज न आए होते तो यहांवाले अपना या अपने देश का कल्याण कभी न कर सकते, क्यों कि कई सौ बरस तक मुसलमानों की गुलामी करते करते हिन्दओं में अब जान ही कितनी बाकी रह गई है!"

मदनमोहन ने कहा,-"ठीक है। यद्यपि हिन्दुस्तान के कई एक बादशाह और नव्वाब ऐसे न्यायपरायण और प्रजावत्सल हो गए हैं कि जिनके प्रातःस्मणीय नाम को आदर के साथ लेना चाहिए पर अत्याचारियों की संख्या इतिहासों में इतनी अधिक