पृष्ठ:हृदयहारिणी.djvu/४

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श्रीः

समर्पण

आदरणीया, श्रीमती, रानी

श्रीराजकुँवरि देवीजी!

"लवङ्गलता वा आदर्शवाला" उपन्यास को जिस आदर के साथ आपने ग्रहण कर हमें सन्मानित किया है, यह आप जैसी विदुषी, गुणग्राहिका,उञ्चकुलसम्भूता, नारीरत्न के लिये योग्य और उचित ही हुआ है। सच है, 'आदर्शवाला' के बिना "आदर्शवाला" का गौरव दूसरा कौन समझ सकता है!

अतएव, श्रीमतीजी! आज यह "हृदयहारिणी वा आदर्शरमणी" भी बहुमान पुरस्सर आपको समर्पित की गई। आशा है कि आप इसे भी उसी आदर से ग्रहण करेंगी, जिस सन्मान से कि आपने "आदर्शवाला" को ग्रहण किया है; क्योंकि "आदर्शरमणी" ही "आदर्शरमणी" की समुचित प्रतिष्ठा कर सकती हैं।

आपके आज्ञानुसार केवल आपका नाम प्रगट किया गया है और सम्पूर्ण परिचय गोप्य रक्खा गया है।

काशी,

समर्पक—
श्रीकिशोरीलालगोस्वामी

ता॰ १ जून सन् १९०४ ई॰