पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१०२

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PARAN SK % E3 %Dm3 अध्याय ७ वाँ गुप्त मंगठन गत अध्यायोमे बताया गया है कि भारतभरम क्राति की बयार जोगेम बहने लगी: इधर विठूरमे भी स्वातत्र्य-समर की यशस्विताकी दृष्टित इस युद्धमे आवश्यक सब बातोंको मगठित कग्नका एक कार्यक्रम बनाया गया! तीसरे अध्यायमे, लटनम गुप्त योजनाएं बनाने हा रगो बापूर्जा तथा अजीमुल्लाको हमने छोड दिया था ! सातारेके इस क्षत्रिय और विटर या मादबके बीच होनेवाली बातचीतको इतिहासमै, भले ही, व्योरेवार न लिखा गया हो, इतना तो निश्चितरूपसे कह सकते है कि इन दोनोने मिलकर लदनम कातिके उत्थानकी रूपरेखा बनायी थी। लंदनमे रंगो बापूजी सीधे मातारा पहुँच गये। किन्तु अजीमुल्ला सीधे भारतमे न आ सके। जिनके सामने खडे होकर यह स्वातव्य-युद्ध लडना था उनकी सत्ता तथा राजनीति के तानेबाने केवल भारत ही मे मर्यादित न रहे थे; जिससे, जिस किसी मोर्चेसे ब्रिटिशोको सताया जा सके, वहाँ हमला करना आवश्यक हो गया था। साथमे यह भी जॉचना आवश्यक था कि इस आगामी स्वातंत्र्ययुद्ध में युरोपके किस देशसे प्रत्यक्ष सहाय और नैतिक सहानुभूति प्राप्त हो सकते है। इसी उद्देशसे भारतको लौटने के पहले अजीमुल्लाने युरोपखडभरमें यात्रा की। ससारभरके मुसलमानोंके खलीफाका स्थान, तुकी सुलतानकी राजधानीको भी वह हो आया। उस समय रूस-तुकी युद्ध चाल था, जिसमें सेबस्तपुलकी महत्त्वपूर्ण लडाईमे इग्लैडको हार खानी पड़ी थी,