पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१०४

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जलामुखी] ७२ प्रथन रूट "मझे इतने भारी सदेह है कि यह बलवान् और सुगठित रगन्यह तोडनमें तुम कहाँ तक साल होंगे।" रात उन्ने लेने लेनेने भारी और सवेरे बैठते समय उल्ने रसेलनी जपर एक निट रखा-" शुभेच्छा के साथ धन्यनद ! आपने त मेरो आफ्नगत करने से 2 उन उसके लिए धन्यवाद देनेत्री अनुमा मुझे दौजिये।" अजीमुल्ला के रूसते लौटनेपर वह व्हॉ कहाँ व्हरा ग्रह ब्रहना इमर । है। किन्तु बाद से प्रसिद्ध हुए गनपुर के क्रांति घोषणापनों है स्ट दिखायी पडता है कि अजानुला, निर के साथ राजनैतिक संबंध प्रस्थापित करने के यलो त था। इसके बाद अजामुल्ला युरोपजे बरेले विदूर लौट आया नत्र उत समय क्रांति इलने गरे प्रनुख नेता व्हॉ इश हुए थे। फिर क्या था ? विठूरके राजमहलमा वातावरण ही जल गया! निती समय भारतमान विजयी वैभवले लहरानेगला जरीपटका, नागेश अन्डा, आस्तक होने बेकार पड़ा था। जिनकी ध्वनितारने हजरों मराठी तलवार रमभूमि उमडक अपूर्व वीरताने जान करती थीं, नार गजे, डंके नगाडे, अन्तर भयानक तण दुःखी सुर निगलते थे और जिसपर मुगल सल्तनत भवितव्य

  • भारतने जारी राजनैतिक शोषणको जानकारी देनेवाला अजीमुल्लाना तुम सुल्तानले नाम लिखा हुआ असल पत्र लॉर्ड रॉटसुने हाथ लगा या इस बारे में लॅर्ड रॉब्द लिखता है:-- " अजीनला नाम उसकी अंग्नेनी प्रेमिकाओंके कई पत्र तथा एक फ्रान्सीसीले दो पत्र ये...लोगों ( Lafont ) के पत्रोंते मालूम होता है कि कलकत्तेने असंतुष्ट तया राजद्रोही जनों तथा, शायद, चंद्रनगरके फ्रान्तीतियोंसे यह आगाजी गरी थी, अंग्रेजी जूको उतार फेनेके काममें वे सहायता करें-इत आमंत्रणके संतोषजनक उत्तरकी आशा लगाये वह ला होनेत्री सम्भावना थी। इस पत्रव्यवहारका कुछ हिस्ता बंद लिफाफेमें पड़ा था और अनानुल्लाने हस्ताक्षरमें कई पत्र थे। इनमें वे दो कुन्तुनियाके ओभरपाशाके नाम थे, जिनमें हिंदी चैनिकोंकी अशान्ति त्या भारतमी निगडी हालत म सरसरी तौरपर निक या।"- -