पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/११

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पर भेजे गये, सैकडो को १० से १४ वर्षातक की सश्रम कारावास की सजा दी गयीं। वीर सावरकरजी को तो दो जन्मों की (५० साल) सजा देकर अण्डमान भेजा गया।

ईतनी भयंकर चोटें होने पर भी 'अभिनव भारत' के लाला हर. दयाल, प्रख्यात साहसी श्रीमती कामा, चट्टोपाध्याय आदि क्रांतिकारियों ने इस अर्थ का दूसरा संस्करण छापना तय किया । श्री. लाला हरदयालने अमरीका में 'अभिनव भारत' की शाखा स्थापित कर 'गदर' नामक अंक समाचारपत्र शुरू किया। क्रांतिदल की सहायता के लिये

   ग्रंथ का दूसरा संस्करण 

'प्रकट रूप से बेचना प्रारंभ हुआ और उस का अनुवाद उर्दू, पंजाबी, तथा हिंदी में 'गदर' पत्र में क्रमशः प्रकाशित होने लगा, जिससे सैनिकों तथा खेती के लिये कॅलिफोर्निया में बसे हुए सिक्खों में नये जागरण की लहर दौडने लगी। जल्द ही १९१४ का युरोपीय महासमर छिडा। भारतीय सेना। में विद्रोह पैदा करने की चेष्टा अिस समय की गयी, जिस में अिस ग्रथ का काफी हाथ था। ईस पुस्तक की काफी प्रतियाँ अमरीका में १५०) रु. में बिक गयी थीं।

वीर सावरकर के पकडे जाने पर मूल मराठी पाण्डुलिपि श्रीमती कामा - के पास पेरिस भेजी गयी। ब्रिटिश गुप्तचरों को ईसकी बू तक न मिले 'इस लिए श्रीमती कामाने

मूल मराठी पाण्डुलिपि का जेवर बँक ऑफ पारिस में सुरक्षित -रख दिया था। किन्तु जर्मनी के आक्रमण से तथा श्रीमती कामा की मृत्यु से - न पारिस बॅक रही, न 'जेवर' का गाहक! बहुत खोज करने पर अस का कहीं पता न लगा। मराठी साहित्य की अमिट हानि कर यह ग्रंथराज नष्ट हो चुका।

अंग्रेजी प्रति के कहीं और भी संस्करण निकले होंगे, किन्तु हमारी जान में जितने प्रयत्न हैं उन्हीं का लेखा यहाँ दिया गया है।