पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

ज्वालामुखी] ७८ प्रथम खड : का ईरानसे युद्ध छिडा था। साथ साथ भारतमें उत्थान हो तो बडा . सहायक होगा यह मानकर ईरानके चाहने दिल्लीके बादशाह के साथ गुप्त राजनैतिक बातचीत चालू की थी। बादशाहके घोषणापत्रमे तो स्पष्ट रूपसं कहा गया था कि दिल्ली दरबारसे ईरानको विश्वासी राजदूत भेजा गया था। बादशाहके दरबारमे जब यह हलचल हो रही थी तब स्वय दिल्ली नगरमें लोगोंके भावोंको अंतःकरणके गहरे स्तरसे उभाडनेके लिए एक महान् आदोलन चालू होनेके लक्षण दिखाई दे रहे थे । हरमे प्रकटरूपस दीवालोंपर पर्चे चिपकाये गये थे। १८५७ में लिखित एक पर्चे यों लिखा था:-फिरंगियोंसे भारतको मुक्त करनेके लिए अब ईरानी सेना आ रही है। इस लिए काफिरकि चगुलसे छटने के लिए छोटे बडे, पढे लिखे या अनपढ सैनिक या नागरिक सभी भारतीयोंको चाहिये कि अब रणमैदानमे कूट पडें । " ये भित्तिपत्रक (वॉल पोस्टर्स ) दिल्ली नगरमें प्रकटरूपसे लग जाते थे किन्तु अंग्रेजोंको इनके कर्ताका पता कभी न लगा । भारतीय समाचारपत्रोंमे भी ये घोषणा छपती थीं और उनपर गूढ तथा साकेतिक भाषामे टीकाटिप्पणी भी प्रकाशित होती थी। दिल्लीके राजमहलसे शाहजादे तथा उनके मुसाहिब कभी गुप्तरूपसे तो कभी प्रकटरूपसे इसको बढावा देते थे और गुप्त पडयंत्रोंका जाल बुन रहे थे। राजा जवानबख्तके धुडदौडके मैदानपर सार्जट फ्लेमिगका लडका छः वर्षोंसे धुडसवारीका अभ्यास कर रहा था। किन्तु १८५७ के अप्रैलमें यह अंग्रेज युवक वजीर महबूब अलीके घर गया था। वहाँ जवानबख्त उसे देखकर आपेसे बाहर होकर बोले 'जा,. निकल जा यहाँसे ! फिरंगीका मुंह देखतेही मेरा खून खौल उठता है।' यह कहकर जवानबख्त उस अंग्रेज युवक के महपर थूके+ (स. १२) हॉ, अन्य लोक, इस ढीठ शाहजादे के समान उबल न पडते हुए अपना आदोलन गुप्तरूपसे चलाते थे। एक अंग्रेज महिला श्रीमती आल्डवेल ने अपने कानों सुनी बात की गवाही दी है, कि कई मुस्लीम माताएँ अपने

  • के कृत इंडियन म्यूटिनी खण्ड २ पृ. ३०, + मिलिटरी नरेटिव्ह पृ. ३७४