पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१११

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१ अध्याय ७ वॉ] [गुप्त संगठन बच्चों को अल्लाह से यह दुआ माँगना सिखाती थी कि अंग्रेजों का जड.. मूल से सत्यानाश हो जाय * दिल्ली के बादशाह का गृहामात्य (प्राइ. व्हेट सेक्रेटरी) मुकुदीलाल कहता है-" राजमहल के दरवाजों के पास बैठकर मुगल तथा अन्य लोग विद्रोहपर मशविरा करते थे। सैनिक अब जल्द ही विद्रोह करनेवाले है: दिल्ली की सेना भी अंग्रेजों के विरुद्ध उठेगी; फिर आम लोग सैनिकों के साथ फिर. गियों का बोझ उखाड फेकेंगे और स्वराज्य में सुखी होंगे, इसी तरह के कुछ विचार जनता प्रकट करती थी। लोगोंके मनमें यह आशा दृढ होती जा रही थी कि स्वराज्य हो जाते ही सब सत्ता तथा अधिकार अपनेही हाथ आ जायेंगे।" इस तरह दिल्लीके घर घरमें विद्रोह की भावना जग रही थी। बम, अत्र स्पोट होने में एक चिनगारी की आवश्यकता थी। दिल्ली और विठूर इन दोनों राजधानियों के समान डलहौसीकी हडप नीति की आखरी बलि अवधकी राजधानी लखनऊ भी विप्लबके गोले फेक रही थी। लखनऊका नवाव तथा उसका वजीर कलकत्तेके पास रहते थे। ऊपरसे ऐसा मालूम पड़ता था कि लखनऊका वजीर रेंगरेलियोमें मगन है; किन्तु असलमे अली नकीखॉ नानासाहब के समान कलकत्तेके पास आगामी पडयत्रकी रूपरेखा चितारेनेमें मशगूल रहता था। बगालके सैनिकोंको अपनी ओर कर, निश्चित समयपर वे कत्र विद्रोह करें इस बारे में उसकी गुप्त किन्तु विशाल और साहसी मत्रणाएँ • देखकर अली नकीखॉकी बुद्धिपर अन्वभा होता है । सैनिकोंमे अग्रेज-विरोधी भावोका प्रचार करनेके लिए फकीर और सन्यासीका मेप देकर अपने कई प्रचारकोंको उसने सेनामे भेजा था। सेनाके हिंदी अफसरोंके साथ पत्रव्यवहार जारी कर उनको यह बात जॅचा दी कि कपनीसरकार की नौकरीकी अपेक्षा स्वराज्यमे कई गुना अधिक लाभ हो सकता है । अवधपर दखलकर अंग्रेजोने कैसे अक्षम्य अपराध किया है, नवाबके राजपर्पोरेवारसे कितनी नीचतासे पेश आये, वेगमों तथा रानियोंको धक्के मारकर राजमहलसे

  • ट्रायल ऑफ दि किंग ऑफ दिल्ली.