पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/११३

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अध्याय ७ वॉ] ८१ [गुन मगटन सैनिक उनकी रक्षाके लिए साथ रहते । एक प्रकारस एसे फकीरका अड्डा तो किसी सेना की छावनी मालूम होती थी। एसे ठाट-बाटसे कोगोंपर । उनका गहरा प्रभाव पडता और सरकारको भी किसी सदेह की गुजाइश न मिलती। लोगोंके आदरपात्र बडे बडे मौलवी इस गजकीय पवित्र युद्धके प्रचारार्थ · हजागे रुपयोंके साथ भेजे जाते । नगर नगरमें, गाँव गॉवमे, ये मौलवी तथा पडित, फकीर एव सन्यासी देशके एक कोनसे दूसरे कोन तक यात्रा कर, इस राजकीय स्वानन्य युद्धका गुप्त प्रचार करते थे। इससे प्रेरणा प्राप्त कर फिर भिन्न भिन्न गुप्त सस्थाओ ने अपनी ओरसे प्रचार जारी किया। वैतनिक प्रचारको का स्थान अब अवैतनिक स्वयसेवकोने लिया । दर दर भीख मांगनेके महान देशभरमे, जनताकी शक्तिको जगाने के लिए स्वातत्र्य, स्वदेशभक्ति एव स्वधर्म प्रेमका बीज बोना प्रारभ किया। इस स्वातंत्र्य-युद्धकी सिद्धता इतनी सावधानी और गुप्ततासे हो रही थी कि प्रत्यक्ष स्फोट के गोले भडकन तक धूर्त अंग्रेजोको उसकी सैन जरा भी न मिली। ये फकीर और सन्यासी जन किसी गॉवमे पढेचते तब उस गॉवमे एकाएक अशान्तिकी ऑधी आ जाती। अग्रेजोंको कभी कभी संदेह हो जाता। बाजारोमे कानाफूसी चाल रहती। भिश्ती 'साब' को पानी देनेसे इनकार कर देता। बिना सूचनाके अंग्रेज घरोंमे काम करनेवाली आया एकाएक नौकरी छोड देती। बावरची मेमसाब' के 'आगे जानबूझकर नगे बदन पहुँच जाते और चपडासी छोकरे सदेसा पढेंचानेको जाते हए अपने साब' के मामनेंसे 'तनकर चलते; तो कभी साब की हसी उडानेके लिए जानबूझकर बुडू बनकर मुंह विचकाते निकल जाते * किन्तु इस एकाएक हुई जनजागृतिको देख अंग्रेज हैरान हो जाते. पर कोई खास सदेह न होता। ये फकीर और पडित सैनिक शिविरके इर्द गिर्दही घूमते रहते । हिदु और मुसलमान सिपाही इन धर्माचार्योंको बडी श्रद्धासे मानते थे जिससे यदि कभी अग्रेजोंको इसमे भेद होनेका सदेह हो जाता तो भी उनके विरुद्ध कार्रवाई

  • ट्रेव्हेलियन कृत ' कानपुर'