पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/११५

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अध्याय ७ वॉ] ८३ [गुप्त संगटन साथ साथ क्रातियुद्धका सकल्प भी किम तरह पहावा जाना था आदि बातोंका वर्णन हम उन स्थानोके उत्थानक कथनम देंगे। इन्ही क्षेत्रोम फिरंगियोंका द्वेष इतनी पराकाष्ठापर पहुंच गया था कि काशीके मदिरोम राजामहाराजाओंकी आज्ञासे. वहॉके पुजारी कातिढलको या मिलनेकी प्रार्थनाएँ, बडे समूहके साथ करते थे।* स्वधर्म और स्वराज्यको हर दिन कसे अपमानित किया जाता है. 'इस बातको सर्वसाधारण जनताक मन में जेंचा देनेके लिए सरल और सादी भाषाम प्रचार करना आवश्यक था। क्रातिदलने, इसके लिए यात्रा, रासमण्डली, रामलीला, अन्य समारोह, आल्हा आदि साधनोको अपने प्रचारतत्र में शामिल कर लिया था। क्या कि, इन अवसरोपर बडे चावसे हजारों लोग जमा होते है। कठपुतलिया अब और ही भाषा बोलने लगी थी, उनका नाच मी अब डरावना और उग्र मालूम होता था। थानोंके सामने, पेडोंकी छायाम, धरमसालाम तथा चीक चौकम कुछ औरही गृढ मंदेशमे भरे बारे और आत्हाके सुर निकलने लगे। रामलीला तथा रासमण्डलीके गानोमे वीरताके ऐसे गान सुनायी पडते, , जिनसे दर्शको की भुजाएँ प.इकने लगती, उनकी छाती तन जाती कुछ पराक्रम करने की इच्छासे खून गरम हो जाता; ठीक उस समय विषय बदला जाता और दगकोको देशकी दुर्दशा का करणापूर्ण वर्णन सुनाया जाता, उसमें फिरगी के विरुद्ध लोहा लेने लोगों को भडकाया जाता और फिर अपने पुरखाओं के समान वीरता के काम कर दिखानेकी स्फूर्ति देनेवाले गान सुनाये जाते। सरकार जिनके आवागमन की कभी पर्वाह न करती थी उन देहातोंमें घूमनेवाली मण्डलियोका भी उपयोग झातिका सदेश फैलाने का काम देने कातिदलके होशियार नेता न चुके थे। कलकत्तेसे पजावतक ये मण्डलिया अपने देशवाधवांके आगे भयकर खेल (?) हर रात को कर दिखाती थी। रेड पॅम्पलेट (लाल-पत्रक) + ट्रेव्हेलियन कृत 'कानपुर' शॉर्द नेरेटिन्ड्सू