पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१२०

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ज्वालामुखी] ८८ [प्रथम खडा) का रच भी सुराग शत्रुको न मिले इस लिए क्रातिदलवाले आकडों या अलग रेषाओ की अनी साकेतिक भाषामें लिखने लगे * ___ इस तरह सवदूर मिद्धता हो रही थी ऐसे हि अवसरपर, सैनिको की धार्मिक सावनाको छेडने की दुष्ट बुद्धिसे उत्पन्न कारतूसोवाली भयकर भूल अंग्रेजोंने की: जिससे उनके पातकोंका ग्याला लबालब भर गया। अपने देशभाइयो के अंतःकरण में धडकनेवाले ध्येय को प्राप्त करने के लिए लडे जानेवाले स्वातत्र्य-संग्राम में ठीक महरतपर पहली गोली चलाने का सम्मान प्राप्त करनेकी सैनिकोंमें स्पधा शुरू थी। नानासाहब तथा अलीनकीखाने हर सेनिक-विभागकं सिपाहियोंपर किस तरह दवाव रखा था और उनमें देशप्रेमकी लहर लहारानेके लिए फकीर, सन्यासी भेजनेका उपाय कैसे जारी था इसका वर्णन हम पहले कर चुके है। किन्तु अंग्रेजोंने कारनूसाकी कमीनी कार्रवाई करनेके कारण हर सिपाही क्रांतिका स्वयं--प्रचारक बन गया और अपने साथीको इस स्वातत्र्ययुद्धमें शपथबद्ध होनेको उसकाने लगा। इन दो महीनोंमे बारकपुर, पजाब, महाराष्ट्र, मेरट, अंबाला आदि छावनियोंके मैनिक-विभागोंमें अवधके नवाबके नामसे हजारो पत्र भेजे गये । किन्तु एकसाथ आये इन पत्रोंके बोझसे लटी डाककी थैलियों देख अंग्रेज अफसर-खाम कर सर जॉन लॉरेन्स-सदह से सभी थैलियों को जॉचते थे। अब तक सिपाहियों में एक अजीव आत्मविश्वास दृढ हो गया था। काली नदी युद्धमे घायल सिपाहियों को जन तोफसे उडा देने की सजा हुई तब अंग्रेजोने सिपाहियो से पूछा था कि क्यों कर उन्होंने विद्रोह किया? । उडे दिलसे सिपाहियोंने कहा हम सिपाही एक हो जाये तो गोरे तो ऊँटके' मह में जीरेके बराबर होंगे।" अंग्रेजोके हाथ लगा एक पत्र बताता है" भाइयो। हम खुद ही फिरंगीकी तलवारें अपने बदनमै घोपते हैं, हम सब मिलकर उठे तो विजय हमारी है। कलकत्तेसे पेशावर तक की भूमिमें खला मैदान हो जायगा।" रातमे सैनिक गुप्त बैठकें करते थे । साधारण सभाम सत्र प्रस्ताव मान्य किये जाते और अंतरंग-मडल का निर्णय हर एक पर बंधनकारी समझा जाता था। गुप्त सभामे आते हुए कोई पहचान न ले

  • इन्नेट कृत सिर्पोय रिवोल्ट पृ. ५५. ।