पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१२१

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अध्याय ७ वॉ] अध्या ८९ [गुसं संगटनः इस लिए केवल ऑखे छोडकर मह वस्त्रसे लॅक लिया जाता था। सभाम अंग्रेजोके देशभरमे किये अत्याचारो का किस्सा बयान किया जाता था षडयंत्रियोंसे किसी का नाम शत्रको बताने का संदेह किसीपर हो जाय तो उसे प्राणदण्ड की सजा दी जाती। सब को विचारों का आदान प्रदान करने का सामूहिक अवसर प्राप्त हो इस लिए अलग अलग कपनियों त्योहारों, उत्सवोंपर अन्य कंपनियो को दावत देती और इस बहाने सैनिकोंके स्नेहसम्मेलन बडी सफलतासे संपन्न होते। चुने हुए सैनिकोंकी बैठक सूबेदारके घरपर होती थी। सेना के नये रंगरूट को भी समझाया गया था कि राजनैतिक तथा धार्मिक आक्रमण किस तरह होते हैं। हर सिपाही अंग्रेजोंसे टकराने को उत्सुक था। फिर भी, कब, कैसे और कहासे प्रारंभ किया जाय तथा मिन्न भिन्न टोलियोंके नेता कौन होगे इस विषयमें उन्हें कुछ भी जानकारी न दी जाती। इसका दायित्व अफसरोंपर था । हरएक सैनिक, अपनी इच्छासे, गगाका पानी या तुलसीदल हाथमें लेकर या कुरान उठाकर शपथ लेता था कि कंपनी जो करेगी वह करने को वह बाध्य है। इस तरह पूरी कपनी शपथबद्ध हो जाती, तब उस कंपनी के नेतागण दूसरी कपनीके नेताओंसे बातचीत चलाते और अपनी अपनी ईमानदारी का प्रमाण देकर संयक्त गुल्न शुरू करते। सिपाहियों के अपोंके समानही कंपनियों में आपसमें होनेवाली शपथे भी अटल और अंतिम मानी जाती थीं। समूचे सगठनमें एक कंपनी एक इकाई होती थी। आगे चलकर अंग्रेजोंने इस विषयमे बहुत मामग्री जमा की । और उसी के आधारपर श्री. विल्सनने सरकारी विवरण मे लिखा है: " मझे निश्चय मालम होता है कि, ३१ मई १८५७ यही दिन सामूहिक उत्थान के लिए मुकर्रर था। हर कपनीमें तीन जनोंकी एक समिति होती थी और यही समिति विद्रोह

  • ( स. १६)....१ के कृत इंडियन म्यूटिनी प्रथम खण्ड पृ. ३६५ . २. “ सचलनभूमि (परेड ग्राऊड ) पर लगभग १३०० व्यक्ति जमा थे। उनका मिर और मुंह जरामे हिस्से को छोड ढेंके हुए थे। अपने धर्मपर बलिदान होनेकी बातें वे कह रहे थे-" नरेटिव्ह ऑफ इडियन म्यूटिनी पृ. ५.