पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१२३

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अध्याय ७ वॉ] [गुप्त संगठन - - - साहाय्यक थे। सरकारको इस असीम वर्गके लोगोका कातिकी ओर झुकाव तथा चेष्टाओके बारेमें जराभी संदेह क्योर न हुआ इसका कारण बहुत सरल है। ये ही,तो सरकारकी ऑख थी जिनके द्वारा उन्हे प्रकाश मिलता था न ? इनपरहीं तो सरकारको निर्भर रहना पडता था न ? और इन लोगोंने यह ठान ली थी कि इस नाजुक क्षणके आ पहुँचने तक सरकारसे जरा भी विरोध न दिखाया जाय । यहाँ तक कि जब किसी क्रातिकारी नेताको पकडनेका काम उनके सिर आता, तब उससे चुपचाप पूरी सहानुभूति रखनेवाले ये हिंदी अधिकारी, किसी अंग्रेज हाकिमके समान बडी क्रूरतासे उससे पेश आते और कडा दण्ड भी देते। मेरठ के सिपाहियोंका मुकदमा चला तब इन्ही हिन्दी न्यायधीशोने उन्हे भयंकर कठोर दण्ड दिया, किन्तु बादमें पता चला कि येही न्यायाध्यक्ष तथा अन्य कर्मचारी कातिके पृष्ठपोषक थे। लखनऊके हर चौराहेमें, जनताको चेतावनी देनेके लिए ज्वलत भाषामें लिखे गुमनाम पचें दीवारोंपर चिपकाये जाते। उनसे एक बानगी यहाँ हम देते है:---- " हिंदुमुसलमान भाइयो उठो, और आपसके सहयोगसे भारतके भविष्यका एक बार निर्णय कर डालो। क्यों कि, एक बार यदि यह अवसर हाथसे निकल जाय तो जीना भी भारी हो जायगा यह निश्चय मानो। इससे यही मौका है। ध्यान रहे, इस बार नहीं तो कभी नही।" अंग्रेज अधिकारी पूरी तरह जानते थे कि ऐसे परचे प्रतिदिन नये चिपकाये जाते थे, फिर भी उन्हे फाड डालनेके बिना उनसे कुछ न बनता। क्यो कि, एक पत्रक जहाँ पाडा चुका वहाँ दूसरा दिखायी देता । पुलीसने साफ कह डाला था, कि इन पत्रकोको कौन चिपकाता है इसे ढूंढ निकालना हमारी बुद्धिके बाहरकी बात है। हॉ, बादमें अंग्रेजोको पता चला कि स्वयं पुलीसके आदमीही कातिदलके सदस्य थे। ___ केवल रूसी क्रातिहीमें नहीं, भारतीय क्रातियुद्धम भी पुलीस जनताके साथ पूरी सहानुभूतिसे पेश आती थी। कातिके गुप्त सगठनका पहिया अब बर्ड वेगसे घूमने लगा था, सो, यह आवश्यक कार्य था कि भिन्न

  • रेड पॅफ्लेट भाग २.