पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१२६

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ज्वालामुखी [प्रथम खड। सैर किस प्रकारकी थी, उस गरीबको क्या कल्पना थी ? लखनऊसे नानासाथ कालपी पहुँचे। इसी बीच जगढीमपुरके कुँवरमिहसे नानासाबका गुप्त पत्रव्यवहार जारी था, साथ साथ राजनैतिक गतिविधीके सूत्रोंको जुडाया जाता था। इस तरह दिल्ली, अबाला, लखनऊ, कालप आदि केन्द्रोंके नेताओंसे मिल तथा आगामी नग्रामकी निश्चिति कर और रूपरेखा ममझा कर अप्रैलके अन्तमें नानासाहब विठूरको लौटे + । उधर प्रमुख नेताओसे मिलकर कातिके उत्थानका महूरत निश्चित करने की दृष्टीसे तथा सत्र कार्याम मेल पैदा करनेके लिए नानासाहब यात्रा कर रहे थे; उधर जनता भी 'उस दिन के लिए पूरी सिद्धता करे इसलिए क्रातिदूतों की एक गुप्त अनोखी मण्डली यात्राके लिए निकल पड़ी थी। ऐसे तो यह सूझ नयी न थी। जब जब क्रातिका कार्य इस देश में शुरू हुआ तब तब इन क्रानिदूनोने-चपातियोने-देशभर के कोने कोने में क्रांतिसंदेश पहुंचाने का काम अवश्य किया था। क्यो कि, वेदरके 'विद्रोह में भी चपातियोंने अपना हाथ बॅटाया था। देशके मुदूर कोनेमें अपने अदृश्य पाखोंसे उडते हुए, ये देवदूतिकाएँ अपने ज्जलन्त सटेगसे देशके हर व्यक्ति का अतःकरण चेताने का काम करती थीं। ये कहाँसे आती

  • रेड पम्पलेट

+ इस यात्राम नानासाहबने बहुत स्थानोंको भट दी होगी, किन्तु जब कि, अंग्रेज प्रथकार उमका जिक्र टालते हैं तो हम भी उन्हे छोड देते हैं। हॉ, यह उद्धरण विशेष महत्त्वपूर्ण है। __उसके बाद उस महान् जोडीने (नानासाहब और अर्जाम) पर्वतीय यात्रा के बहाने ( मेन टंक रोट) सीधे राजमार्गके सभी छावनियोको भेट दी और अबालेतक पहुँच गये। यह सूचित किया जाता है कि उनके शिमले जानेमें यह हेतु था कि पर्वतीय छावनियोके गोरखा सैनिकोंमें अगान्ति पैदा कर दी जाय। किन्तु अंबाले पहुँचनेपर जब उन्हें पता चला कि उन पलटनोका बड़ा हिस्सा वहींके छावनियों में आ गया है तो उनका काम न बना और आगे जाना इस बहाने गल दिया कि वहाँ ठद बहुत है। -रसेल की डायरी । (म, १८ देखो) .