पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१३३

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अध्याय १ ला] ९९ हुतात्मा मंगल पाडे' wr mmmmmmmmmmm. .. .. ... .. सिरपर होनेपर भी उमे रच मी खबर न होने देकर, नानासाहत्र, मौलवी अहमदशहा तथा अली नकी खाने कातिके जालकी बुनाई इतनी कुशलता तथा गुप्ततासे की थी कि, उनको जितना सराहे थोडाही होगा। जिन नेताओने, सफलताके साथ एक दूसरेकी सहायताके लिए कधेसे कंधा मिलाकर लडनेकी आवश्यकता हिंदु-मुसलमानोंको जॅचा दी, और सैनिक, पुलीस, जमींदार, मुलकी अधिकारी, किसान बनिया, साहकार आदि जनताकी सभी श्रेणियो तथा स्तरोके लोगोंको क्रातिकी कल्पनासे भर दिया, उनके गुप्त-संगठन-चतुरताका कोई जोड नहीं मिलेगा। कातिका यह सगठन पर्याप्त हो गया, उसी समय, बगालके सैनिकोपर चरबीसे चिकने काडतूसोंको बरतनेकी सख्ती सरकार लाभ उठाया और उन्हें यह अवसर इसलिए मिला कि, जैसा कि मैंने सिद्ध करनेकी चेष्टा की है, सैनिकों तथा लोगोंकी कुछ श्रेणियोंका मन इस बातका विश्वास करनेको राजी बनाया गया था, कि हर बातमें उनके विदेशी स्वामियोंका दुष्ट हेतु है।" . मेडली कहता है:---असलमें, चरवीसे चिकन कारतसोकी बात तो बहुत दिनोसे, कई कारणोंसे, लगाये गये सुरडगोंमें जलायी दियासलाईके समान थी।" " श्री डिजरायलीन तो साफ शन्टमि इस मान्यताकी निटा की कि चिकने कारतूस कभी उस विद्रोहके मूल कारण हो सकते है ।"--- चार्लस बॉल कृत इडियन म्यूटिनी खण्ड १, पृ ६२९. * इससे एक डग आगे जाकर एक लेखक लिखता है:---- यह तो संदेहके परे सिद्ध कर दिखाया है कि, कारतूसोंका डर तो बहुतेरोंके लिए एक बहाना मात्र था ! जिन काडतूसोंकी टोपी दॉतसे तोडनेपर अपनी जातिको गॅवानके, भयका इतना बतंगड बनाया गया था, उन्हीको, हमसे लडते समय, हमीपर, वेही सिपाही खुलकर चलाते, उनमें कोई हिचकिचाहटन थी।