पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१३४

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प्रस्फोट] १०० [द्वितीय खंड همه مدیره مو هم ده ده مه هه می कर रही थी। यह माना जाता था कि इन कारतूसोका सर्वप्रथम प्रयोग १९ वी पलेटनपर होगा। यह फरवरीका महीना था। बंगालमें छावनी डाले पलटनोंसे ३४ वी पलटन विद्रोहको आतुर हो रही थी। यह पलटन तब बारकपुरमें थी। कलकत्तेके पास डेरा डाले अली नकी खॉने इस समूचे पलटनको क्रातियुद्धका मन पढाकर शपथबद्ध कर रखा ही था। इसी पलटणकी कुछ कपनियाँ १९ वी पलटनमे कुछ काल तक लायी गयी थी। उस परस्पर सबंधसे वह पूरी १९ वी पलटन क्रांतिके पक्षमें हो गयी थी। अंग्रेजोको इसकी कल्पना तक न थी, जिससे उन्होंने कारतूसी प्रयोगके लिए इसी उन्नीसवी पलटनको चुना और उसपर इस बारे में सख्ती की। किन्तु, इस समूचे पलटनने उस आजाको साफ ठुकरा दिया और शासकोको चेतावनी दी कि यदि इस विषयमें उनपर सख्ती की जाय तो, अपनी तलवारोसे उसका प्रतिकार करनेमें वे नहीं हिचकिचायेंगे। अंग्रेजी स्वभावके अनुसार इसपर उन्होने 'काले आदमी को ढबाना शुरू किया; किन्तु अंग्रेजोंको तुरन्त होश आया कि यह वह पहलेका काला आदमी' अब नही रहा। यह सत्य तलवारोकी झनझनाहटने उनके कानमें भर दिया । अंग्रेजोंको, इस अपमानको चुपचाप पी लेना पड़ा, क्यों कि, सिपाहियों को डरानेके लिए उनके पास गोरी पलटने न थीं। इस कमीको पूरी करने के लिए, मार्च महीनेके प्रारभमे बरमा से एक अंग्रेजी पलटन कलकत्तेको लायी गयी। फिर, १९ वी पलटनको तोड देनेकी आज्ञा जारी हुई । इस आज्ञाका प्रथम प्रयोग बारकपुरमें ही करनेका निश्चय हुआ। किन्तु अपने देशबंधुओके अपमानका यह प्रसंग खली आखो देख हाथ मलते बैठनेको बारकपुरकी पलटन सिद्ध न थी। और इन सैनिकोंमें मगल पाडेकी तलवार तो अपनी म्यानमें पड़ी रहनेसे इनकार करने लगी। १९ वीं पलटनके समान ३४ वी पलटन भी कपनीसरकारकी सेनासे खारिज हो जानेको सिद्ध हो गयी थी। इसके सब स्वदेशभक्त वीर चाहते थे कि समूची पलटन तोड दी जाय तो बहुत अच्छा हो जायगा। विचारशील और नीतिज्ञ नेताओंने सभी सहयोगियोंकी सलाह लेनेकी दृष्टिसे और एक महीना सब करनेका आदेश दिया। और विद्रोह का दिन निश्चित