पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१३५

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अध्याय १ ला] १०१ [हुतात्मा मगल पाडे करने को भिन्न भिन्न पलटनों के नाम बारकपुरमे पत्र भेजे गये। किन्तु मगल पाडे का खड्ग तत्र नक कहाँ सब करता! __मगल पाडे जन्मसे भले ही ब्राह्मण माना गया हो, वह कर्ममे क्षत्रिय था. और उसे नौजवान शूर सैनिककी हैसियत ही में उसके साथी जानते थे। समरागण में असीम साहसी और शूर, चरित्रसे अतीव शुद्ध तथा पापसे दूर रहनेवाले, स्वधर्मपर प्राणोस अधिक प्रेम करनेवाले इस तेजस्वी युवक ब्राह्मणवीर हृदयमै स्वदेशकी, स्वाधीनताकी साधना बस जानेसे उसकी सारी देह किसी विद्यत्-शक्तिसे भर गयी थी। ऐसे वीरकी तलवार क्यो कर पड़ी रहे १ हा, हुतात्मा (गहीट ) की तलवारें तो कभी पडी नहीं रहती। हुतात्माका दीप्तिमान् मकुट केवल उन्हीं वीरोके मस्तकपर विराजमान होता है, जो जा-अपजगकी पर्वाह न करते हुए अपनी प्रिय साधनाको अपने उण रक्तमे नहलाते हैं। यो इस 'व्यर्थ' की बलिके खूनमें से ही विजयकी निर्मल मूर्ति साकार हो उठती है। अपने धर्मबधुओंपर अत्याचार होगा इस खयाल ही से मगल पाडे का हृदय व्यथित हो उठा और उसने हर्ट पकडा कि तुरन्त सारी पलटन विद्रोह कर दे । जब उसे पता चला कि अपने इस अनुरोधको कातिटलके नेतागण नहीं मानेंगे तो वह आपसे बाहर हो गया। तुरन्त उसने एक भरी राइफल उठाई और मचलनभूमिकी ओर यह चिल्लाते हुए दौड पड़ा, " माईयो । उठो, उटो, किस सोचमें पडे हो,' उठो, तुम्हे तुम्हारे धर्मकी सौगध है। आओ, स्वाधीनताके लिए इन'कमीने शत्रुओंपर टूट पडे।" सार्जट मेजर ह्यसनने जब यह 'सब देखा तब उसने मिपाहियोंको आजा दी कि मगल पाडे को गिरफ्तार किया जाय । कोई सिपाही मगलपाडे को छुनेका साहस न कर सका, हॉ, पाडेकी राइफलसे गोली छूटी और गोरे अधिकारीकी लाश भूमिपर फडकने लगी । इसी क्षण, ले. बान्ह वहाँ आ पहुँचा । सचलन भूमिपर पहुंचते पहुँचते पाडेकी राइफलसे और एक गोली चली और इधर लेपटनर साहब अपने घोडेके साथ भूमिपर गिर पडे । मगल पाडे अपनी रायफल फिरसे भर रहा था, इतनेमे यह अफसर सेंमलकर उठा और अपनी पिस्तौल मगल पाडे पर तानी । पाडेने इसकी जरा भी चिंता न करते हुए अपनी तलवार उठाई