पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

१०२ [द्वितीय खर' प्रस्फोट] और गोरेपर अपटा । बॉव्हने गोली चलायी, पर निशाना क गया; तब उसने भी तलवार सेवारी, किन्तु इतनेमे पाडेने ध्यानसे वार किया और लेपटनट साहब धराशायी हो गये। फिर और एक गोरा पाडेपर अपटा; त्यो ही एक सैनिकने अपनी बदककी नली उसके सिरमें दे मार्ग । " खबरदार, पांडे के पास कोई न जान पाव", मभी सैनिक एक साथ चिल्ला उठे, तुरन्त कनल व्हीलरने मगल पाडेको गिरफ्तार करने को कहा । फिर सिपाही चिल्लाये, " इस परम पवित्र वीर का बाल भी बॉका न होने देगे" अग्रेजी खूनका बहाव और मैनिकों की विद्रोहवृत्ति देख कर्नल व्हीलर वहॉमे हट गया और सेनापतिके निवाम की और दौड पडा । इधर खूनसे रगे अपने हाथों को ऊंचा कर मगल पाडने पुकाग -" भाइयो! उटो। उठो। " मेनापति हीअसने जब यह सुना तो गोरे सैनिको को साथ ले वह पाडे की ओर बढा 'अव मै फिरगी के हाथ पड जाऊँगा; इससे मौन हजार दरज अच्छी है' इस विचारसे वेहोश होकर मंगल पाउने अपनी राइफल अपनी छातीपर दागा। घायल होकर वह भूमिपर गिर पडा । उसे उठाकर रुग्णालयमें पहुँचाया गया, अंग्रेज अफसर भी इस शूर सैनिककी बहादुरीमे हैरान होते हुए अपने स्थानो को लोट पडे। यह वटना २९ मार्च १८५७ को हुई। __ आगे चलकर सैनिक न्यायाध्यक्षोंके समक्ष मगल पाडेका मुकदमा चला। तहकिकातमें उसे डॉग गया कि उसके साथी पडयंत्रकारियों का नाम यह वृता दे। किन्तु उस धीर युवकने किसीका नाम देनेसे इनकार कर दिया । साथ यह भी कहा, कि उसने जिन गोरोको मारा था उनसे किसी तरह व्यक्तिगत कोई द्वेष न था । यदि मगल पाडेने अवसर पाकर अपने व्यक्तिगत कीने का प्रतिगोध लेनेके लिए गोरोको मारा होता तो उसका नाम शहीदोकी टोलीमें नहीं, क्रूर हत्यागेंमें लिखा जाता है किन्तु मगल पाडेका यह काम एक ऊँची और उदात्त साधनाकी लगन की प्रेरणासे हुआ था। गीता उपदेशपरलाभ अलाभ, जय पराजयकी चिता न करते हुए लडो,-चलते हुए स्वधर्म ओर स्वराज्यकी रक्षाके हेतु उमकी तलवार उठी थी। स्वधर्म और स्वराज्यपर होनेवाले अत्याचारोंको खुली आँखों देखनेकी अपेक्षा मौत गले लगाना अच्छा है इसी निश्चयसे वह बाहर निकला था। उसके इस साहस