पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१३९

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WIFI अध्याय २ रा मेरठ मगल पाडेके लहसे सींचा हुआ हतात्मापनका बीज अकरित होने के लिए बहुत देर तक रुकना न पड़ा। ३४ वी पलटनके सूबेदारको इस लिए दोषी ठहराया गया कि वह रातमें जातिकी गुप्त बैठके बुलाता है, और उसे कत्ल कर दिया गया। और जब १९ वी और ३४ वीं पलटनें विद्रोहकी गुप्त योजनाएँ कर रही थी इसका लेखी प्रमाण मिला तब उनके सैनिकोंको निःशस्त्र कर भगा दिया गया। सरकारके मनसे तो यह 'दण्ड दिया गया था, किन्तु उन सिपाहियोने. इसे अपना सम्मान माना। उस दिन गोरी पलटनोको तैयार रखा गया था। अंग्रेज सेनाधिकारी मानते थे कि जल्द ही अपनी मूर्खतापर ये सैनिक पस्ताएँगे कि व्यर्थम बेकार होना पडा। किन्तु उन हजारो सैनिकोने किसी विनौनी और अछत वस्तुके समान अपने तलवारोंको आनदसे डाल दिया और गुलागीकी जजीरोको तोडनेका सुख पाया। उन्होने अपनी वर्दियोंको खींच-पाडर निकाला, बूटोको फेक दिया और, मानो, दासताका पाप धो डालनेके लिए पीसकी नदी में नहाने दौडे। उस समयकी प्रथाके अनुसार सिपाहियोको अपनी टोपिया अपने जेबसे खर्च कर खरीदनी पडती थी, इससे कपनी सरकारने टोपियों उनके पास रहने दी किन्तु पापसे मुक्त होनेके लिए नदीमे नहाने के पश्चात् इस पराधीनताके चिन्हको सिरपर चंढानेको वे कहाँ राजी थे ? छिः! ऐसा निंदनीय काम करनेकी किसकी कामना होगी ? दूसरेकी टोपियाँ पहनकर अकडनेके दिन अब फिरसे इस