पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१४०

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प्रस्फोट] [द्वितीय खंड भारत न आएँगे ! तो फिर फेक दो उन गुलामीके चिन्होको! हजारों रोपियों आकाशमें उडी; किन्तु गुरुत्वाकर्षगके अदल नियनसे वे फिर भारतभूमिपर ही गिर पड़ी ! अरे, हिंदमाता फिरसे अपविन हो गयीं ? सैनिको दौडो, जल्दी करो और अंग्रेज अधिकारियोले नमक्ष इन दसरे अत्यचिन्होको पाडो, तोडो, मिट्टीमें पटक्कर पॉवतले रौदो सैकड़ों सिपाही अपवित्र टोपियोंको पैरोंतले कुचलने लगे। यह तो प्रत्यक्षरूपसे सरकारी सत्ताका अपमान या। सिपाहियोंका यह टोपियोपर नाचना देख, क्रोध तथा आश्चर्यसे अग्रेज अधिकारी हैरान हो गये।* मगलपाडेके खुनने जगालही नहीं, दूसरे छोरपर अबालभ भी कातिकी तीन लहर पैदा हुई । गोरोंकी प्रमुख छावनी अंबालेही मे थी और सेनापति अॅन्सन उस समय वहीं था । अवालेके सैनिकोने एक नयी तरकीत्र सोची थी, कि जो भी अफसर उनके विरुद्ध हो उसका घरही जला दिया जाव। फिर क्या था ? हर रातमे देशद्रोही तथा उपद्रवी सेनाधिकारियोंके घरोमे आगका अवाछित आगमन होता। यह आग लगानेका काम इतनी गुप्ततासे और झटपट होता, मानो, अमिदेवत्ता स्वयं इन गुप्त सगठनका सदस्य बने हो। आग लगनेकी तो धूम मर गयी, और हजारों रुपयोका इनाम, 'आग लगानेवाले बदमाशको पकडा देनेके लिए, सरकारसे बोषित होनेपर भी, एक भी कातिकारीने मुखबिर बननेका णप न किया । अन्तमे सेनापति अन्सनने गवर्नर जनरलको लिखा:-~यह तो एक पहलीसी बन गयी है, कि याग कैसी लगती है इसका पता नहीं चलला ! हर एक जन ऑसोमे रात काटता है, फिर भी इन उपद्रवकि जनाको जानना पूरेपूर असम्भव हो गया है। अप्रैलके अंतमे पिर उसने लिखा, "मुझे भी यह बडा अजीब मालूम होता है कि अंबालेकी आगोंका मूल हमे नहीं निल रहा है। किन्तु एक बात स्पष्ट होती है, कि उनपर हुए अत्याचारीका बदला लेने के लिए जिन्होंने इस भयंकर तरीकेका अवलबन किया है, उन 'दुधों में भी कितना अभेद्य संगठन है और यदि कोई भेदिया बन जाय तो उसे मिलनेवाले भयंकर दण्डका इर. लोगों के

  • रेड पॅन्फ्लेड, खण्ड १, पृ. ३४