पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

प्रस्फोट] ११२ [द्वितीय बड। कार्य पूरा करने का दायित्व मेरठ के नगरबासियोंने अपने सिर ले लिया। अंग्रेजोंका बदला लेनेकी हवस इतनी पराकाष्ठापर पहुँच गयी थी, कि जब उनके कुछ पत्थर के बने मकान जलाये न जा सके तो उनको ढहाकर चकनाचूर कर दिया गया। कमिशनर ग्रेटहेडका अगला भी सुलगाया गया। कहते हैं, कि फिर भी वह छिप रहा था। तब मेरठवालोने सशस्त्र होकर उसके बगलेको घेर लिया। तब वह अपने बावर्ची की शरण मे गया और अपने तथा अपने परिवारके प्राण बचानेके लिए गिडगिडान लगा। निदान, बटलरने लोगोको भुलवा देकर दूर हटा दिया और उस आगसे ढहते हुए बगलेसे कमिशनर भाग खडा हुआ। भीडने श्रीमती चेम्बर्सको बंगलेके बाहर खींच लाकर चप्पूसे भोंक दिया । कॅग्टन केगीने अपनी औरत तथा बच्चोंको घुडसवारोंकी वर्दी पहनाकर, उनका रग नजर न आय उस तरह, 'एक टूटे मदिरमें छिपा रखा । डॉ. खिस्ती और पशुवैद्य डॉ. फिलिप्स पर हमलाकर उन्हे कत्ल कर दिया गया। कॅप्टन टेलर, कॅप्टन मॅक्डोनाल्ड और ले. हेडरसन का डटकर पीछा करके उनका काम तमाम कर दिया। कई स्त्रियों और उच्चे जलते घरोंमे अग्निमें जल मरे । ज्यो ज्यों अंग्रेजी खूनकी आहुति पड़ने लगी त्यो त्यों क्रांतिकारियोका आवेश और उग्र बढ़ने लगा। रास्तेसे गुजरनेवाले भी गोरोकी लाशको लाथ मारकर उनका अपमान करने लगे। शायद किसीको दयासे अंग्रेजोपर तरस आ जाय तो हजारों लोग वहाँ दौड आते और चिल्ला उठते "मारो फिरंगीको!" फिर वहाँ उपस्थित किसी सैनिककी कलाईके वेडीके चिन्ह बताकर वे चिल्लाते, "इसका बदला अवश्य लिया जाय।" बस, फिर दयाको कोई अवसर न मिलता और तलवारे चमक उठती! ___ असलमै, कातिके उत्थानकी दृष्टि से मेरठका क्रम सबके अन्त मे होना चाहिये था। क्यों कि केवल दो पलटने पैदलसेना और एक पलटन घुडसवार; बस, इतनीही हिंदी सेना थी, जहाँ एक पूरी सयफल फलटन तथा गोरे डगूनोंकी एक पूरी पलटन वहां मौजूद थी। साथमें पूरा तोफखाना अंग्रेजोके वशमे था । इस दशामें सिपाहियों को जश मिलना दभर था। इस लिए विछोहके साथ बदला लेनेका काम मेरटकी जनतापर