पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१४९

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अध्याय ३ रा ] १ १५ [ दिली देशप्रेमी स्त्रिर्योंने अपने मर्मभेदी शब्दोंसे सैनिकोको छेडा ओर उन्हें, अपने सैनिक बघुओंको छुडवानेको उकसाया, जिससे एक नूतन, गर्वपूर्ण घटनाको इतिहासमें स्थान मिला, यह ठीक है । किन्तु मेरठके सैनिकोंने अपने इस अकालिक उत्थानने शत्रुको चेतावनी देकर अनजाने अपने देशबधुओंकौ बडे संकटमे फँसा दिया । दिल्लीमें सभी सैनिक हिंदी ही थे । मगल पांडेकी हुतात्मतासे वे भी बेचैन ही रहे थे । किन्तु बादशाह बहादुरशाह और बेगम जीनतमह्लने बडी चतुरतासे सबको रोके रखा था । इसी समय मेरठकी गुप्त सस्थासे यह संदेश उनके पास पहुँचा "हम कल पहुँच रहे हैं आवश्यक प्रबंध किया जाय । यह अनपेक्षित और अजीब सदेश दिल्लोको पहुँचते पहुँचते मेरठके दो हजार सेनिक 'चलो दिल्ली' के नारे जगाते हुए दिल्लीके मार्गको तय भी करने लगे थे । प्रत्यक्ष रात की आँखोसे नीद गायब थी । हजारों घोडोंकी टापों तथा उनकी हिनहिनाहटसे; तलवारो तथा सगीनोंकी खनखनाहटसे मार्ग चलते हुए क्रातिकारियोंके भौषण नारोसे और उनकी भयप्रद कानाफूसीसे, भला, रातकी आँख कैसे झपकेगी? जब पौ फटी तब मेरठका तोपखाना अपना पीछा नहीं करता है यह देख कर बडा अचरज हुआ । सैनिकगण रातकी सब थकावटको भूल गए और रच भी आराम् न करते हुए फिरसे जोर लगाकर रास्ता तय करना जारी रखा । मेरठसे दिल्ली करीब ३२ मील है । सवेरे लजभग ८ बजे मेरठ की सेनाका एक हिस्सा परमपवित्र यमुना नदीके पास आ

(सं. २२) बाजार (मेरडठके) की स्त्रियोंने, सचमुच, हमें ३१ मई १८५७ के सगठित और एक साथ होनेवाले कत्लेआमसे बच़ाया है। सुरगे बिछायी गयी थी, सिलसिला बाध दिया गया था तथा और तीन सप्ताह तक धीमे जलनेवाली दिया-सलाई जलानेका विचार नही था। स्त्रियोंके मुखसे पडी चिनगारीने उन सुरंगोंको सुलगा दिया और १० मईकि रातने उस भयंकर द्रश्यका प्रारंभ देखा, जो अंग्रेजी हुकूमतके नीचे भारत आनेसे,तब तक कमी नहीं देखा गया था। जे. सी. विलसन क्रत ऑफीशियल नॅरिटिन्ह.