पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१५०

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प्रस्फोट [द्वितीय खड पहुँचा। शीतल वायुलहरोंसे, मानो, स्वातन्य प्राप्त करने के काममे लगनसे जुटे हुए वीरोंको और बढ़ावा देनेवाली कालिंदी को देख, सैकडो सैनिकोने एकसाथ " जय जमुनाजी" का नारा लगाकर जमुनाको वदन किया। नावोंके उतराते पुलसे दिल्ली की और घोडे दीडने लगे। किन्तु, हो, क्या सचमुच " जमुनाजी'को इनकी पवित्र साधना का भान था? तो फिर, चलते समय उस पवित्र कार्यको जमुनाको बताकर, तथा उसका शुभाशीटि लेकर आगे बढनाही अनिवार्य था। यह बात ? तब खीची उस गोरे को . जो पुलपर से गुजर रहा है और हॉ, उस का खून, कालिटी के काले पानी मे, मिला दो। यही खुन उसे उम कारण को समझायगा जिस कारणने ये सिपाही इतने जोरोंसे दौडते हुए दिल्ली जा रहे है। नावों का पुल पार कर सिपाही दिल्लीके तट ही से टकरा गये। यह मवाद पातेही अग्रेज सेनाध्यक्षोने दिल्ली के सभी सैनिको को सचलन भूमिपर एक कतार' होने की आज्ञा दी और उन के आगे 'राजनिष्ठा' पर भाषण झाडना शुरू किया। ५४ वें सेनाविभाग के कर्नल रिशेने मेरठी सिपाहियोंका मुकाबला करनेकी सूझ पेश की। उसके सैनिकोंने कहा " दिखा दो हमे है कहाँ वे सिपाही (जो मेरटसे आये है )"। फिर हम उन्हें देख लेते हैं भाई !" कनैलने कहा " गावाग" और यह सेनाविभाग कातिकारियोपर टूट पडनेको आगे बढ़ा। कुछही दूरीपर उन्हे मेरठी धुडसवार किलेके रुख दौडते हुए नजर आये। घुडदलके पीछे पीछे रक्तरजित वस्त्र पहने अंग्रेजी खूनकी प्यासी मेरटकी पैदल सेना भी आगे कदम बढाती आ रही थी। दोनो ओर की सेनाकी चार ऑन हुई। तब दोनोंने एक दूसरेको सैनिकवटना की और दिल्लीवाले मेरठवालोंसे "भित्रभावसे गले मिले। जब मेरठी पलटनने ' अंग्रेजी शासनका विनाश हो' और 'बादशाह अमर रहे' के नारे लगाये तो दिल्लीवालोंने उसके उत्तरमें नारा जगाया ' मारो फिरंगीको' ! कर्नल रिले इस गडबडीमें चिल्लाने लगा 'यह क्या माजरा है ?" जवाब गोलियोकी बौछारने दिया और उसकी देह छलनी होकर धूलमें लोटने लगी। दिल्लीकी सेनाके अंग्रेज अधिकारियोंका इसी तरह सफाया हो गया। फिर मेरठी देशभक्त धुडसवार नीचे उतरे और अपने दिल्लीवाले साथियोको गले मिले ! इसी समय