पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१५५

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अध्याय ३ रा] १ १९ [ दिल्ली

बादशाहको भी धीरज ट्वेंधाया । शहाजहा तथा अकबरकी स्मृतियोसे उनके मनको भर दिया और यह विहार घर कर गया कि पराधीनतामे जीवित रहनेकी अपेक्षा स्वदेशको स्वतंत्र करनेके युद्धमे कट जानाही बेहतर है । वादशाहने सेनिकोंसे कहा " अपना खजाना खाली पडा है, नुम्हे वेतन कहॉसे मिलेगा" ! सिपाही तुरन्त गरज उठे " हम समस्त भारतके अंग्रेजी खजानोंको लूटकर आपके चरणोंमे धर देंगे । " 'दृ इसपर बादशाहने क्रातिका नेतृत्व करना मान लिया, तब वहाँ उपस्थित सभी कटोसे निकली 'सम्राट की जय हो !' प्रचड ध्वनिसे आकाश गूंज् उठा।

राजमहलंमै यह घटना हो रही थी तब बाहर नगरभरमे भयका अधा- घुधी मच रही थी । दिल्लिके सैकडों नागरिक हाथ लगे शस्त्रको उठाकर कातिकारियोंमें मिल रहे थे और किसी अंग्रेजकी बलि दूँढ़ते हुए गली गली छान रहे थे। दोपहर बारह बजे दिल्ली बँकको लोगोने घेर लिय। क व्यवस्थापलक बेरिस फोर्ड अपने परिवारके साथ लोगोके प्रतिशोधकी आगमे जल गय,सब बैंक तईस-नहस हुई।फिर जनताकी दृष्टि'दिल्ली गजट' के मुद्रणालयपर पडी। मेरठके सवादको द्यापनेमे वहोंके कर्मचारी मगन थे, त्यों ही बाहर क्रातिके नारे सुनायी पडे । चंद मिनिटोंमे वहाँके ईसाई कर्मचारियोको ईशुके पास भेज दिया गया; टको (टाइप) को फेक दिया क्या; यत्रोको तोङ-फोड दिया गया, जो भी चीज अंग्रेजोके छूनसे अपवित्र होनेका संदेह् हुआ उसे मिट्टीमे मिला दिया गया । क्रातिकी लपट अब उग्र बनकर आगे बढी । किन्तु वह देखा उधर गिरजाघर ? इधर कातियुद्धकी धूम मची हो, और वही मात्र अपना शिखर आकाशमें घुसाकर तनकर खडा रहे है? इसी गिरजाघरमें, अग्रजी शासन को भारतमें अमर करने के लिए, प्रार्थनाएँ की गयी थी । आकाशके वापके नाम, क्या कभी इस गिरजाघरके भक्तोको भूलसे भी यह बताया था,कि एक प्रजाका दूसरी प्रजापर-इग्लडका हिंदुस्थानपर-शासन करना सर्वथा अन्याय है, अपराध है १ उलटे, इन पक्षपाती ईसाई सस्थाओने अत्याचारी पीडकोको अपनी शरणमें लेकर उनके पारलौकिकि कल्याणकी अपक्षा उनके ऐहिक स्वार्धसाधन ही की अधिक चिंता की थी।इस साँचा:मेटकाफ