पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

प्रस्फोट] १२० [द्विनीय खंड प्रकारके ये मैतानी अड्डे अपने बीच में टिकने दिये; इसीका बदला गौ और सुअरकी चरबीसे चुपडे काडतूमोके रूप अदा किया जा रहा है ! तो फिर क्यो न आगे बढा जाय ? देखते क्या हो? खींचो नीचे उम कर ईमाई धर्म चिन्ह को! गिरा दो दिवारोंपर लटकते चित्र चकनाचूर करो उम व्यानमदिर तथा खिस्तीपीटको । और एक ही गर्जना करो 'जय क्राति' । हर दिन गिरजाघरमं बटा बजता है । तुमभी आज लौटते समय इन घटोको खत्र दनदनाहटम बजाओ! बटो, चलने दो तुम्हारी घनधन | अजी आज इतनी देरतक यह अनघनहट होनपर भी एकमी अग्रेज इम ओर नहीं ऑकता; सो क्यों ? घटो ! इन ' काले' हाथोंका स्पर्ग तुम्हे कहातक भाता है ? तुम सह नही सकते ? अच्छा, तो जाओ' नीचे ! हमारे भाई तुमपर नाचने को खडेही है ! अपने स्थानसे जब एक एक घटा हडइकर नीचे गिर पडता तर उसकी बनधनाहट को मुन वह क्रानिकारियोंका जमघट विकट हास्यके फवारोके साथ कानाफूसी कर रहा था 'क्या तमागा है !' किन्तु इधर दूसरी और इससे भी बढकर भीपण घटना हो रही थी। राजमहलके पासही अंग्रेजोंने गोलाबारूट का एक बहुत बड़ा अनार अना रखा था। इसमें युद्ध के उपयुक्त अनगिनत सामग्री भर रखी थी। कमसे कम नौ लाख कारतूम, आटसे दस हजार राइफले, बदक, घरेमें काम आनेवाली तोपे और धडाकेसे उडनेवाली सूरगोकी मालिकाएं वहाँ भरी पड़ी थी। क्रातिकारियोंने इस अंबारपर दखल करनेकी ठानी। किन्तु यह कोई कुरिहयाम गुड फोडनेका काम थोडे ही था ? वहाँके अंग्रेज पहरेदार चाहते तो एक ढियासलाई जलाकर चाहे जितनी आक्रमक पलटनोको एक श्रणमें खाकमें मिला सकते थे। इसीसे इस अंबारपर दखल करना पहाडमे टक्कर लेना था। किन्तु कातिका जीना भी, बिना उसके, मरक्षित न था। तब हजागे सैनिकोंने यह काम करनेका निश्चय किया। सम्राटके नाममे एक मदेश वहाँके मुख्याधिकारीके पास भेजा गया कि वह उस अबारको सम्राटके अधीन कर दे। असे कागर्जा सदेशांमे कहीं गज्य या मिहासनका लेनदेन होता है ? लेफ्टनट विलोबीने इसका उत्तरतक देनेकी पर्वाह न की। इस अपमानने गुस्से होकर हजारों सिपाही गन्त्रगारके तटपर चढ़े। अंदर नी अग्रेज और कुछ दिदी नौकर थे। दिल्लीके दुर्गपर सम्राटका झण्डा फहरते हुए जब उन