पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१५७

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सध्याय ३ रा] १२१ [दिल्ली दी लोगोंने देखा तत्र वे भी क्रातिकारियोंमे मिल गये; हॉ, बचे हुए नौ ग्रेज बडी बहादुरीके साथ जान हथेलीपर लेकर लडने लगे। किन्तु निकोंकी इतनी बड़ी संख्याके सामने ये मुट्ठीभर अंग्रेज खडे नही रह कते थे, यह साफ दिखायी दे रहा था। तब उन्होने भी यह सोच रखा था जब शस्त्रागारको अपने हाथमे रखना असभव हो जायगा तब उसे पूरी तरह उडा देगे. क्यों कि समूचा शस्त्रागार क्रांतिकारियों को सौप देनेपर सी उनके प्राणोंकी खैर न थी। इधर सैनिकोको भी इस बातकी पूरी ल्पना थी कि यदि अंबारको उडा दिया जायगा तो अनगिनत साथियो । प्राणोकी बलि चढेगी, फिरभी सैनिकोने जोरदार आक्रमण जारी रखा। नकी सहायताके लिए दिल्ली के सेकडो नागरिक दौड पडे थे। इतनम हसा, टोनो दलो को जिसकी पहलेसे अपेक्षा थी, हजारों तोपे एकसाथ टने पर होनेवाली गडगडाहटके समान एक धमाका हुआ और धुएँ और आगके स्तम आकाशम फूट पडे । उन नौ अंग्रेज बहादुरोने कातिरियोंके हाथ शस्त्रागार दे देनेसे इनकार किया और स्वयं उसमे स लगामर उन्होंने आत्म-बलिदान किया। उस प्रस्फोट के भयकर मकिसे २५ सैनिको तथा पामके मार्गपर खडे ३०० आदमियोंके रिरॉकी सचमुच बोटी बोटी उड गयी। हो, इतने भीषण स्फोटमे इतने लोगोंकी बलि चढाकर भी शस्त्रागार दखल करनेका जतन बिलकुल व्यर्थ न हुआ। बदकोका एक खासा र हाथ लगा, जिमसे हर एकके हिस्सेम चार चार अदके आयी। जब क यह केन्द्र अंग्रेजोके अधीन था तब तक छावनीके सभी हिंदी सिपाही हाक अग्रेज अफसरोके आज्ञाकारी थे। हॉ, इन हिदी लोगोंने अपने इयांसे भिडनसे इनकार किया था तो भी वे अंग्रेजोंके विरुद्ध भी ही नहीं बने थे। गामके लगभग चार बजे इस प्रचड स्फोटसे सारा ली शहर थरी उठा: और सब छावनीके सिपाही उठे और 'मारो फिरगिको, नारे ललकारने हुए अंग्रेजोंपर टूट पड़े। गॉर्डन, स्मिथ, रेव्हली और भी गोरा मिला-हर एकको कल कर दिया गया। एक गतीके बाट जागरित राष्ट्रीय प्रतिगोधने पुरुष, स्त्रियों, बालक, घरबार, इट पत्थर, ११, मज, कुर्सी, रक्त, मॉस, हाइ-मतलब, अग्रेजोसे मबंधित सबकुछ