पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१५८

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प्रस्फोट] १२२ [द्वितीय खड तोडफोडकर नष्टभ्रष्ट कर दिया। निदान, सम्राटकी आज्ञाने कुछ अग्रेजोको इस हत्याकाण्डसे बचा लिया; उन्हे राजमहलमें बढी बनाकर रखा गया। 'किन्तु उन क्रूरकमा अग्रेजोंके विरुद्ध जनताका क्रोध इतना भडक उठा था "कि चार पाच दिन खीचातानी करनेके बाद सम्राट्ने उन पचास बंदियोको लोगोंके हाथ सौप देना ही उचित माना। १६ मईको इन पचास अग्रेजोंको खुले मैदानमे ले जाया गया। हजारो नागरिक यह दृश्य देखने को जमा हुए और सभी अंग्रेजी हुकूमत तथा दुष्टता को कोसते थे। सूचना पातेही सेनिकोने उन ५० अंग्रेजोके सिर धडसे जुटाकर दिये। एकाध अंग्रेज तलवारसे बचनेके लिए सिर एक ओर झुकाकर दयाकी याचना करता, 'तत्र भीडसे यह चिल्लाहट होती कि, “ हथकडियों का बदला "!"परा चीनता का प्रतिशोध "। " शस्त्रागार की बलि का बदला! अवश्य लिया जाय।' तब तलवार उस झुके सिर को साफ उतार देती। अंग्रेजो आ हत्याकाण्ड ११ से १६ मई तक जारी रहा। इस बीच सैकडो अंग्रेज अपनी जान बचानेको दिल्लीसे भाग निकले। कुछ गोरोंने अपने मुंहपर त्याही पोत उसे काला बना लिया और काले आदमीका 'घणित' वेश चढा लिया। कुछ गोरे जगलोमे भागते हुए घामकी प्रखरतासे जल मरे। कुछ एक कबीरकी साखियाँ स्टकर सन्यासीके वेशम देहातोमें गये और अपनी खेर मनायी। किन्तु इस बागको जब देहातियोंने भॉप लिया तो उनका काम तमाम कर दिया। इतना सब होते हुए भी न किसी गाँवमे, न दिल्ली नगरमें एक भी अग्रेज स्त्रीसे छेडछाड हुई। यह बात अंग्रेजोसे नियुक्त जॉच -समिनिने सिद्ध की है और अंग्रेज इतिहासकारोने भी एक राय होकर मान ली है। फिर भी उस समयके ईसाई धर्मप्रचारकोंने इग्लैंडमे झूठी अस्बाट पलानेमे कोई कसर थोडे ही उठा रखी थी ? हमें साफ कहनेम . स. २३ " चाहे जितनी करता तथा रक्तपात हो गया हो, बादमे जो रिस्ले होनेकी गत फैलायी गयी, कि स्त्रियोंसे छेड छाड हुई, उनकी आवरु लटी गयी, मेने जहाँ तक तहकिकात की है, इसके सच्चे होनका कोई ठीक प्रमाग मुझे न मिला।"-ऑनरेबल मर विलियम मूर के. सी. एन्. आइ, हेड ऑफ दि इंटेलिजन्म ग्रॅच डिपा.