पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

1 . Ya . YHURIHARANESH अध्याय ४: था विष्कंभ तथा पंजाब-काण्ड दिल्ली के स्वतत्र हो जानेका सवाट विद्यत गतिसे 'देशभर में फैल गया, जिससे भारतीय तथा विदेशी लोग सन्नाटेमें आ गये। अंग्रेज इस घटनाका पूरा अर्थ समझ न पाये, उनकी अक्ल चकरा गयी। हिदुस्थानभरमे शान्तिका साम्राज्य बसा हुआ है इस विश्वाससे लॉर्ड कॅनिंग उधर कल. कत्तमे चैनकी नीद सो रहा था। इधर सेनापति अॅन्सन शिमलेके शीतल शैल शिखरोपर सैर करनेकी सोच रहा था। जब निगको दिल्ली स्वतत्र हो जानेका दो पक्तियोंका तार आया तब उसे पढकर वह अपनी ऑखोपर विश्वास न कर पाया। अग्रेजोके समान भारतीयोको भी डर लगता था; क्यों कि, दिल्लीके इस अचानक विद्रोहसे गुप्त क्रांतिकारी संगठनके सभी आयोजन व्यर्थ हो चुके थे। और दिल्लीके अचानक उत्थानसे भौचक होकर अंग्रेज सैनिक हलचलोंकी दृष्टि से जो भही भूल कर बैठे थे, उसे दुहरानेकी सम्भावना न थी। उलटे, अपनी भूल सुधारनेका मौका उन्हे प्राप्त हुआ था। दिल्ली के सिहासनको सम्राटसे छीन लेना तो अब दो एक दिनमें जोरदार हमला करके सहजमे बन सकता था। किन्तु पहलेसे निश्चित ३१ मई का सब स्थानोमे एक साथ विद्रोह फुट निकालता, तो एकही दिनमे क्राति का सफलता निश्चित थी। खेर, भलेही वह इरादा अब छोडना पडा, मरठके अनपेक्षित विद्रोहके बावजूद भी क्रातिकारियोने दिल्लीपर दखल कर. लया, उसीसे कातिको एक विशाल राष्ट्रीय रूप मिल गया; और इस असाधरण संवादसे भारतभरमें औरही लहर उठी थी। समस्या अब यह थी