पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१६४

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अस्फोट] १२८ [द्वितीय बड इस देशम है या नहीं ? तो फिर, ऐसे समयम एसी घोषणाओंभा प्रद. शन लोगोंको शान्त करने के बदले उन्हे उभाडनेक काम का था। ऐसे थोघे पत्रकोंको पढनेका समय किसके पास था? क्या कि, सभीके मन दिल्लीसे घोषित होनेवाली आदरणीय राजानाकी ओर लगे थे! क्या ही मजेदार दृश्य है ! एकही समयमे दो घोषणापत्र ! एक दिल्लीन स्वाधीनता का तथा दूसरी ओर कलकत्से पराधीनताका ! अर्थात् हिंदुस्थानने दिल्ली राजाज्ञा को सिर ऑखोंपर रखा ओर इसीने निगने अपनी लेवनी तोडकर दिल्लीपर तोपे दागनेकी आना दो।। सर सेनापति अॅन्सनको . दिल्ली स्वतत्र होनेका तार जा मिला तब वह शिमलेमे था। वह सोचही रहा था कि क्या करे, उसके हाथने निग की आजा पर्डी कि दिल्लीपर टखल करो। क्रांतिके मगठनके बल तथा योजनाओंके बारेमे अंग्रेजोंका इतना अज्ञान था कि एक सताहमें दिल्ली हथियाने और एक महीनेमे विद्रोहको दबानेका उन्हें भ्रमपूर्ण विश्राम था। पजायक कमिशनर सर जॉन लॉरेन्सने भी अॅन्सनशे दिल्लीपर दखल नेका वर्य (अनंट ) तार भेजा था। किन्तु दिल्लीपर दखल करनेका काम कितना कठिन हैं इसका नान केंनिग और लारेन्नको अग्ला मनापति अॅन्सनको अयिक धा, निमम उसने पूरा सिद्धता होने तर गज रखना ही उचिन जाना। शिमलेका पहाडीन वह अंबालेकी छाननीने पहुँचा नहीं कि उस शिमलेग प्रचड ग्वलबली मच जानेकी खबर मिली। गोरखाओंकी नजीरी पलटनने विद्रोह कर दिया ऐसी अफवाह सब ओर खुत्र फैल जानेसे शिमलेके अंग्रेजोंके हाथ पांव फूल गये थे। उस वर्ष शिमलाम इतनी की गरमी पडी थी, जिसे अंग्रेज तह न सके। तत्र -वहॉकी ठढी पहाडी कोठियो तथा मनोहर बागोके सुख उन्हें महेंगे पडने लगे । गोरखा पलटनके आनेकी खबर पातेही औरने और बच्चे जहॉभी शरण मिले वहाँ भागने लगे। इस दौडकी स्पर्धाम पीठके बोझोंके बावजूदी पुरुषोने स्त्रियोंको हराया और वे आगे बढ गये! अंग्रेजी वीरताका यह प्रदर्शन दो दिनतक खुले मैदानमें हो रहा थाः किन्तु कोई गोरखा विद्रोही वहाँ नहीं आया। जिससे वह चंद्र हो गया। कलकत्तेमे भी असेही दृश्य दिखायी देते थे। एकाएक अफवाह