पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१६७

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अध्याय ४ था] १३१ [विष्कम तथा पजाब-काण्ड भार सौपा और स्वय जींदका शासक पानिपतकी (सैनिक दृष्टि से ) अत्यत प्रवल भूमिपर मोची लगाये बँटा । इस तरह इन दो प्रमुख मोचोंके सुरक्षित हो जाने पर दिल्लीसे अम्बालेतकके सभी मार्ग और वेरोकटोक पजाबसे अंग्रेजोंका सबंध, पूरीतरह भयमुक्त हुए। किन्तु दिल्ली स्वतत्र होनेका सवाद मिलतेही अन्सनका दिल बैठ गया था। और फिर, शिमलेकी हिमगीतल छायामें अबतक मुखसे समय बिताने के बाद अब वीरान मैदानकी प्रखर गरमीमे झुलसना पडेगा इस विचारसे उसके मनमे डर छा गया । इस तरह मानसिक व्यथा और गरीर व्याधीसे जर्जर होकर २७ मई १८५७को यह सेनापति अन्सन हैजेसे मर गया। उसी दिन उसका स्थान सर हेन्री बर्नार्डने ले लिया। पुराने सेनापतिको दफनाकर नये सेनापतिके नेतृत्वमें अंग्रेजी सेना दिल्लीपर चढाई करने चली। तब अंग्रेजोको विजयकी इतनी पक्की निश्चिती थी कि वे प्रकट रूपसे शेखी बघारनेमे मगन थे कि, " सबेरे युद्ध शुरू होगा और शामतक दिल्लीमे दुश्मनों का खून पीयेंगे ।" यह सेना अम्बालेसे चली तब इन गोरोंके अंतःकरणका गुप्त गरल जगत्की जानमें पूरी तरह आ गया। कहा गया ‘मेरठ के सभी सैनिक शैतानके बच्चे है ( हीदन्स)। मेरठ और दिल्लीम केवल काडतूसी अफवाह का विश्वास कर इन दुष्टोंने 'निष्पाप' अंग्रेजों की हत्या की ! इन लोगोंके देश-हिंदुस्थान मे धर्म और सभ्यता कितने जगली होंगे?" हॉ, जो गुप्तही है उसको नगे रूपसे ससारके सामने रखनेसे क्या लाभ १ नहीं तो झूठी अफवाहोंसे सत्य तथा जगलीपनसे सभ्यतापर घणा करने के लिए स्वय परमात्मा प्रवृत्त होगा। हाय, हाय, सत्य और परमात्माकी विडचनाको धो डालनेके लिए लहूकी नहरेंही बहानी पडेंगी!! अम्बालासे दिल्लीके मार्गपर पडे संकड़ों गाँवोसे गुजरते हुए जो भी आदमी हाथ लो उन्हे एक कतारमें सैनिक-पचायतके सामने खडा किया जाता और सबके सबको फॉसी की सजा सुनायी जाती और अत्यत राक्षसी तथा जगली तरहसे कत्ल किया जाता! मेरठके हिंदी लोगोंने अंग्रेजोंको कत्ल किया यह बात सही है किन्तु जंगली करतासे नहीं ! तलवारके एकही वारसे सिर जुदाकर दिया जाता, बस । किन्तु अंग्रेजोंका बड़प्पन इसमें है