पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

प्रस्फोट] [द्वितीय स्खड .............. ...... ............. .... कि उन्होंने इस गलत तरीकेको ठीक कर दिया । पचायत फाँसीका फैसला सुना देती तबसे फॉसीका मचान खडा होनेतक गोरे सैनिक उन देहानियोपर अत्यत निर्दय तथा पांगविक अत्याचार करते थे। मौतकी मजा पाये हुए इन वेचारोंके सिरके बाल एक एक कर नाच दिये जाते; मगीने घोप कर उनके शरीरसे खिलवाड किया जाता। और इसमें भी बदकर यह काम करनेको कहा जाता जिसके सामने मौत नो मामूली बात हो जानी है। पाठक, हृदय थामे पढो । उन बेबस देहानियोंकि मुखमें गोमांस ये गोर सैनिक भालो और संगीनोंकी नोकोंमे हँस देन थे । ___ हा; तो, पाठकगण, यह कहते हम मल गये कि मैनिक पचायतका नाटक वैसाही अब तक चला आ रहा है जसा उम ममय था! सैकडों गरीब किसानोंको गोरुके समान बाडेम बिठाकर उनका 'न्याय, किया जाता! नेदर्लडस्मे जब इसी तरह क्राति हुई थी, तब आल्व्हानने भी इस तरहका एक न्यायालय बनाया था । इसम न्याय इतना योग्य और अचूक था कि कभी कभी न्यायाध्यक्षही अपने आसनपर सोया हुआ पाया जाता। निर्णय देनेका समय आनेपर उसे जगाया जाता तब बी गभीरतान अपराधियोंपर दृष्टिक्षेप कर निर्णय सुनाता " सबको फॉसी!" मालूम होता है, उसी नेदलंडस्के ऐतिहासिक देहदण्डालय (डेथचेंबर) का परिवर्तित तथा पारवर्धित सस्करण हिंदुस्थान बनाया था। क्यो कि, यहॉके पच कभी न सोते थे ! यहाँ तक कि न्यायासनपर बैटनेके पहलेही उनमे शपथ गयी जाती थी “ मैं अभियुक्तके अपराधी या निर्दोष होनेपर गौर न करत' हुए सबको देहान्तका दण्ड दूंगा" और, फिर इस तरह शपथबट्ठ

  • हिस्टरी ऑफ दि सीज ऑफ दिल्ली.

x (स. २४ ) सनिक-पचायतके आसनपर बैठनेके पहले पच शपथ करते थे कि अपराधी या निर्दोष होनेकी पर्वाह न करते हुए बदीको फॉसीकी सजा फर्मायेंगे, और उनमें से एकाध इस अविवेकी बदलेके विरुद्ध आवाज उठातेही उसके साथी शोर कर उसे चुप कर देने । चटपट निर्णयके बाद फॉसीपर जानेवाले बटियोंको खिजाया जाता और अनाही सोजीरोंसे