पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१६९

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• अध्याय ४ था] १३३ [विष्कम तथा पजाव-काण्ड अंग्रेज पत्र 'काले' आदमी को फैसला सुनाकर एकमाथ मब फॉसी फर्मानेका काम जिस आसनपर बैठकर करते उन अंग्रेजीम " कोर्ट मार्शल" नाम रखा गया था! दिल्ली और मेरठम भरे मुट्ठीभर अंग्रेजोंकी हत्याका भयकर राक्षसी बदला लेनेके लिए हाथ आय हर मानवकी न्या की जाती । इस तरह हजारो गरीब किसान मारे गये और मरने के पहले उनपर पाशविक अत्याचार किय जाते थे। इस हगमे गुजरते हुए सेनापति बनाई दिल्ली जाने के पहले मेरटकी गोरी पलटनाको साथ ले जानेके दराम उधर महा। हम कह चुके है कि मेरटम काफी गोरी सेना थी । यह सारी सेना अम्बालेमे चली सेनासे मिलने को मेरठम चल पडी थी । किन्तु इन दो मनाआंकी भेंट होनेके पहलेही दिल्लीका राष्ट्रीय सैनिकटल मेरटी गोरी फौजसे भिडनेको आगे बदा । दिनाक ३० मईको हिटन नटीपर टोनीका सामाना हुआ। हिंदी सेनाका दाहिना पासा प्रबल तोपखानेके कारण निर्भय होनेसे अंग्रेजोंकी उस और कुछ न चली। किन्तु घमासान युद्ध के कारण बायाँ पासा अग्रेजी सेनाके दवाबके सामने टिक न सका। गडबडीमें पाच तो पीछे छोडकर हिंदी सेना दिल्लीतक हटीं । किन्तु, गोरे आकर उन तोपोंपर दखल करे उसके पहले ११ वी पल्टनके एक सिपाहीने डटकर मौतका सामना किया। कोई अपना कर्तव्य करे या न करे, देहमें प्राण हो तब तक राष्ट्रसेवाका प्रण उसने किया था। देशमेवाकी इस लगनसे, गोरोका हाथ तोपोर एडे इसके पहले उसने बारूदम आग लगा दी, जिसके प्रचड धमाकेसे कॅप्टन अॅन्डज और उसके साथी जलकर खाक हो गये तथा कई घायल हो गये। इस तरह अनेक शत्रुके सिर हिंदमाताके चरणोपर चढा देनेके बाद उम हुतात्माने अपनाभी मस्तक उसको गोदम सदाके लिए धर दिया। जिस तरह दिल्ली के शस्त्रागारका दाग देनके साहसपूर्ण आत्मबलिदानके लिए अंग्रेज इतिहासकार लेफ्टेनट का कीर्ति गाते है, उसी तरह मातृभूमिके लिए हुतात्मा बनकर यत्रणाएँ दी जाती जहाँ पढे लिखे अफसर तमाशा देखने और उसमे रस लते। -होम्सकृत हिस्टरी ऑफ दि सीपॉय वॉर पृ. १२४