पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१७०

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प्रस्फोट] १३४ द्वितीय खड' HAWANA मौतको गले लगानेवाले उन वीरोका स्तुतिगान हमे अवश्य करना चाहिये। किन्तु, दुर्भाग्य ! उन हुतात्माओका नामतक इतिहास नहीं जानता। इन अनामिक वीर सैनिकोंके बाग्मे के लिखता है “'विद्रोहियों में भी राष्ट्रकार्य (नॅशनल कॉज) सफल करनेके लिए प्राण हथेलीपर लेकर कराल कालके गालमे घुसनेवाले शूर वीर थे,-इस घटनासे हम अच्छी तरह यह बात सीख गये।"* ___ इस पहली भिडन्तम अग्रेजोको पूरा विजय मिली, तत्र वे मानते थे कि दिल्ली तो टो एक दिनमे हथिया लेगे; इस प्रकार की पूछताछ करनेवाले कई पत्र भी चारो ओरसे आने लगे, किन्तु बात कुछ और ही थी। क्रातिका यह अनोखा भडाका होकर देशभरमे उसकी ज्वालाएँ भडक रही थीं, तो भी उसका नतृत्व कर अनुशासनपूर्वक उसका मार्गदर्शन करने के लिए आवश्यक धैर्य तथा नीतिज्ञता दिलीम नहीं थी। हॉ, दिल्लीके हर बाशिदेने यह प्रण किया था कि 'जबतक दम में दम हो, मातृभूमि को स्वतंत्र करके ही दम लेगे।" ३० मई को. रातभर पीछे हटकर आये हुए सैनिकोकी लोगोने बडी निदा की; तब तेहा आकर फिर वे ३१ मईको मैदानमें उतरे। क्रातिकारी तोपे आग उगल रही थी, अग्रेजी तोपे भी उनका मुकाबला कर रही थी। किन्तु, उस दिन कातिकारी तोप ठीक निशानेपर गोले फेकती थी और कातिकारी भी उस दिन असाधारण धैर्यसे डटे हुए थे, जिससे अग्रेजोकी ओर मृतोकी सख्या बहुत बढ़ गयी। तिसपर मईकी चिलचिलानी धूप अग्रेजोको हैरान कर रही थी। इसीसे, अग्रेजोंने शामके बाद चागे ओरसे हमला करनेकी ठानी। किन्तु क्रातिकारियोंने अपनी तोपोसे प्रलयकर आग उगाली और अपनी फैली हुई पातीको भी सॅवार लिया और जब ठीक अग्रेजी सेना हमला प्रारभ कर रही थी, तभी बड़ी कुशलतासे राष्ट्रीय सेना हट गयी! बहुत अच्छा कातिवीरो! एक दिनम तुमने काफी प्रगति की है। कल भी इसी तरह कुशलतासे तुम हट जाओगे तो बस अंग्रेजोंकी बन आयी समझो! क्यों, कि छोटी

  • के कृत हिस्टरी ऑफ दि इडियन म्यूटिनी खण्ड २ पृ. १३८