पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१७६

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प्रत्फोट] १४० [द्वितीय खड - -- ले चुके है यह सबाट मत्र ओर फैल गया तब अग्रंजोका आतक, बद्धकर पजाबमे उन्हे सुरक्षित भूमि मिल गयी। उनकी धाक खुब जम गयी !* किन्तु लाहौर के किले के सुरक्षित स्थान से भी बढकर अमृतसर के गोविढगढ का स्थान था । गोबिटगढ सिक्खों का पवित्र स्थान था। वहाँ कहीं कुछ हो जाना नो यहाँ के मिक्ख विद्रोह करनेकी अधिक सम्भावना थी, इस लिए सिपाहियों की खास नजर थी। उस से मियामीर के निहत्थे सिपाही गोबिदगढ को कब्जा करनेके लिए अमृतसरकी ओर कूच कर जान की अफवाह फैली थी। आगामी मकट को भांपकर अमृतसर की रक्षाके लिए जाट और सिक्ख किमानी से प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना को मानकर इन अग्रेजनिष्ठ देशद्रोहियोंने अंग्रेजी की महायता की और १५ मईके पहले लाहौर के समान अमृनमर का किला भी अंग्रेजी के हाथ लगा । इस तरह लाहौर तथा अमृतमरके दो महत्त्वपूर्ण स्थान कातिके मपसे पूर्णतया ___ पजाबकी रक्षाका आवश्यक प्रवध पूरा कर मर जॉन लॉरेन्सने अपने प्रातके बाहर अपनी सैनिक शक्तिको बढाना प्रारंभ किया। दिल्लीके सवाट पातेही उमने वादेस कहा कि यह 'बलवा' नहीं, एक 'राष्ट्रीय उत्थान है। फिर भी उसे यह भ्रम था कि थोडेही समयमे यदि दिल्लीपर दखल वर मके तो और क्रिसीमी स्थानमें कातिका कोपल नहीं निकलेगा। इसी लालसासे वह मेनापति अन्सनको पत्र पर पत्र लिखता रहा कि कुछ भी करो किन्तु जनके पहले दिल्लीको हथिया लो। यहाँ तक, कि अम्बालेकी सेनाम सख्याकी कमी न हो इस लिए वह लगातार पजावी मेनाविभागों को उधर मेजता रहा। हो, साथ, पजाबकी रक्षाका पूरा दायित्व उसने अपने सिर लिया ही था। इस सहायक सेनाकी पहली पलटन थी, लीके नेतृत्वम,

  • स. २५ " पजाब यदि हाथमे जाता तो हमारा सर्वनाश हो जाता! हमारे पास सैनिक सहायता पहुँचनेके पहले तो सभी अंग्रेजोंकी हड्डियाँ धूपम सूखती पडी होती । उस सकटसे बचकर फिर सिर ऊँचा करना और पूरत्र में अपने शासनको जमाना इग्लैंडके लिए असम्भव था।लाइफ ऑफ लॉर्ड लॉरेन्स