पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१७९

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अध्याय ४ था]. १४३ [विकम तथा पजाब-काण्ड पजाबके अग्रेजी शासकोने क्रांतिकी इस कच्ची कडीको ठीक पहचाना और बडी चतुरतासे उन्होंने इस बातसे पूरा लाभ उठाया। उन्होने सिक्ख और जाटोको मुसलमानांके विरुद्ध उमाइनेकी कुटिल कार्रवाई की। सिक्खोमे किसी समय फैली हुई भविष्यवाणीका स्मरण जान बूझकर उन्हें कराया गया । भविष्यवाणी यह थी कि, जिस स्थानमें मुगल सम्राटोने सिक्खोके गुरुओको कत्ल किया, उसी राजधानी दिल्लीपर सिग्न एक दिन चढाई करेंगे, वहाँ,के सिहासनको मटियामेट करेगे। अग्रेजोने 'खालसा'भोको यह जताना शुरु किया कि वह दिन अब आ लगा है, भविष्यवाणी सच निकलेगी ! किन्तु, हॉ यदि अकेले सिक्खही दिल्लोपर चढाई करे और उसे जीनें, तो अग्रेजोको क्या लाभ ? हॉ, बहादुरशाहके स्थानपर रणजीतसिह आ-जायगा बस ! किन्तु बहादुरशाह और रणजीतसिह टोनाको अगूठा दिखाकर स्वयही दिल्लीके सिहासनपर बैठनेका जिनका प्रमुख मन्तव्य था, उन्होंने इस भविष्यवाणीमें और थोडा घुसेड दिया हो तो वह स्वाभाविक था।यह परिवर्धित भविष्यवाणी कहती थी:-सिक्ख दिल्लीपर दखल करेगे; मुगल सिंहासन मटियामेट हो जायगा। किन्तु: हॉ, खालसा मिक्खो और ताम्रमुखी (गोरे) अग्रेजोंके संयुक्त जतन हीसे होगा। वाहवा । क्या भविष्यवाणी है । सिक्ख इस जालम फैसे और भविष्यवाणी सच्ची निकली। धूतं अग्रेजोने 'गुरुदे खालसा' की भावुकतासे पूरा लाभ उठाया। दिल्ली के बारेमें सिखोका द्वेष भडक उठे इस लिए झूटमूट यह बात पैला दी कि बहादुरशाह की पहली आज्ञा थी, समा सिक्खोंको कत्ल किया जाय । वेचारा बूढा बहादुर शाह ! क्या दुर्भाग्य है। इन्हीं दिनो, सम्राट दिल्लीकी गली गलीम जाकर पुकारता फिरता था कि यह युद्ध फिरगियोंके खिलाफ है, इसमें किसी भी हिंदी आदमीका बालभी बॉका न हो* कातिदलके तनतोड प्रयत्न करने परभी सिक्ख अग्रेजोसे मिल गये। किन्तु पंजाबमें और भी पलटने थीं जो केवल हिंदी सिपाहियों की बनी थी। उन्होने अग्रेजोसे लोहा लेनेका निश्चय किया था और योग्य अवसर की ताकम थे । इन पलटनांके सिपाही ही केवल स्वातन्यके लिए प्रतिज्ञाबद्ध

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