पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१८०

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अस्फोट] १४४ [द्वितीय खड न थे, वरच सेना के बाहर के हजारो लोग क्रातिका मत्र सब ओर फैलाने को कटिबद्ध थे इसीसे, मियामीर के सिपाहियोको निःशस्त्र बनाने पर भी, अग्रेजोंको बहुतही जल्द मालूम हो गया, कि जिम भूमिको कडी जान कर वे उस पर डटे है वह अदरसे सेध लगकर पोली बन गयी है। लाहौर तथा अमृतसर के दो किले यद्यपि सुरक्षित थे, फीरोजपुरका गोलाबारूदका केन्द्र बहुत ही असरक्षित था। कही विद्रोही सिपाही उमपर कब्जा करनेके जतन तो नहीं कर रहे है। इसे आजमानेके लिए १३ मईको सिपाहियोका एक सचलन तय हुआ। किन्तु सचलनके समय सैनिक इतनी शान्तिसे पेश आये कि उनके कलेजेको चीरनेवाले ज्वलन्त प्रतिशोधका सगग अग्रेजोंको रचभी न मिला । इसलिए उन्हे निःशस्त्र करने का विचार रत हुआ। हॉ, दो पलटनोंको अलग किया गया। एक पलटनको संचलन करते हुए बाजारोंमे घुमाया गया। हाँ, इन बाजारोम आजकल क्या सौदा हो रहा है इसकी अग्रेजोको थोडेही कल्पना थी? ग्राहक और व्यापारी दोनोंके प्रचारसे सिपाहियोमे स्वाधीनताकी लहर खूब जोर मार रही थी। बाजारोंमे सचलन करते हुए निकल जानेपर मिपाहियोंने अपनी हिचकिचाहट, संदेहशीलता आदि तजकर एकही पक्का निश्चय कर लिया। उमी क्षण 'हर हर महादेव का नारा बुलट हुआ और तत्र फीरोजपुरका मन्त्रागार संभालना। असम्भव हो जानेसे अग्रेजोको उसे जलाने के बिना कोई चारा न रहा। इसके बाद जिस दिलिका राष्ट्रीय झण्डा सब भारतवासियोको उसके नीचे खडे हो जानेका निमत्रण देनेके लिए लहरा रहा था, उसी दिल्लीकी और दृतगतिसे दौड पडे । इसी समय फीरोजपुरकी जनताने बलवा कर दिया ओर अंग्रेजोके बंगलो, डेरो, क्लबघरो तथा गिरजाघरो को जला दिया गया। गोरोका शिकार करनेके लिए लोग घूमने लगे। किन्तु मेरठसे तारद्वारा चेतावनी मिलनेके कारण सब गोरे बारिकोंमे छिपे रहे। सिपाहियोकी टोहपर रहे गोरे सैनिकोंने -जो मिले उसे तलवारके घाट उतारा और कुछ दूरी तक उनका पीछा कर अपनी अविचारी कलेआम तथा पैशाचिक अत्याचारोकी शेखी बघारते हुए गोरे सैनिक लौट पडे। - क्रातिकारी सेनाके समान सीमोत्तर प्रातके अफ्गानी जगली गिरोहोकी भी धाक अग्रेजोंपर जमी थी । १८५७ की क्रातिका प्रचार