पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१८३

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अध्याय ४ था] १४७ [विष्कम तथा पजाब-काण्ड rrrrrrrrrrrrrene वाले अंग्रेजोंको ललकारा और सचमुच ५५ वीं पलटनके वीरवरो ने स्वदेश और स्वातव्यके लिए झूझकर मौतको गले लगाया । ५५ वीं पलटनकी हौतात्म्य-कथा अंतःकरणको रुला देनेवाली परम शोकप्रद है ! अग्रेजी पलटनने इनका पीछा इतना जोरदार किया था, कि घोडेकी पकड ढीली न करते हुए निकलसन चौबीस घटे घोडा दौडाता रहा । सैंकडों सिपाही खेत रहे और बचे हुए लडते लडते सीमाप्रातके बाहर हट गये। किन्तु वहॉभी उन्हे कौन आसरा देता ? पठान गिरोहोंने तो उन्हें बहुत सताया। एक्का दुक्का सिपाही मिलनेपर उसे बलात् मुसलमान बना दिया जाता । इस तरह ये सिपाही स्वधर्मकी रक्षाके लिए लड़ते हुए, कश्मीरके महाराज गुलाबसिहजीके आसरेकी आशासे कश्मीरको भागे। पेटमें अनाजका एक कण नहीं, ठढीसे बचनेको आवश्यक कपडे नहीं; तापनेको आग नहीं, इस दशामे इन सेकड़ों हिंदू सिपाहियोंके लिए सारे भूपृष्ठपर अपने पवित्र धर्मका त्राता कोई न रहा। इस दुःखसे ऑसू बहाते और पहाडी प्रदेगको लॉघते कश्मीर जा रहे थे, तब अंग्रेजोंने स्थान स्थानपर आयोजनपूर्वक जगली जनावरोंके समान बडी निर्दयतासे उनका शिकार किया। तिसपर भी हिंदु तथा हिंदुधर्मका कोई न कोई तारनहार अपनी पुकार सुनेगा इस भोली आगासे कुछ सिपाही इस शिकारसे भी किसी तरह बचकर कमीर चले गये। किन्तु हाय सिपाहियोंका वह भ्रम भी अब दूर हो जायगा! कश्मीरके राजपूतवशी गुलाबसिंहको जब पता चला कि स्वधर्म के मान की रक्षाके लिए प्रत्यक्ष कालके गालमें कूदनेको सिद्ध ये सीपाही उसके पास आ रहे है तब उसने आजा कि उन सिपाहियोंको कश्मीरकी सीमामे पाव न धरने दिया जाय ! यहाँ तक, कि उस हिंदू मरेशने अंग्रेजोंको अपनी इस महान करततकी खबर दी कि 'जहाँ भी कोई सिपाही कश्मीरकी सीमामें मिले उसे गोलीसे उड़ा दिया जाय,'--यह घोषणा उसने की है । ओ सैनिको । अब या तो अपने धर्मको छोडो, या गुलामी या मौत पसत करो। शाबाश वीरो। तुमने मौतही पसद कीया! इन सैनिकोंकी इतनी क्रूर कल्ल अंग्रेजोंने चलायी थी कि मैदानोंमे गडे हुए फॉसीके तख्ते, हिंदूरक्तके लगातार अभिषेकसे भींगे, सडने लगे थे तब भी अंग्रेजोंकी पिपासा शान्त न हुई। कायम बने वधस्तंभभी इस कामसे ऊब गये, तब