पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१८४

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प्रस्फोट १४८ [द्वितीय खड www. nw modaaaaam तोपोंने अपने मुंह आगे बढाये और ५५ वी पलटनके जिन सिपाहियोंने अंग्रेजी खूनका एक बिदुभी नहीं गिराया था, उनसे बचे हुओंको तोपके आगे बाँधकर उडा दिया गया ! “ हजारों हिंदू इसतरह एक क्षणमें जमराजके घर पहुँचाये गये; किन्तु आखिर दम तक "--उस सयंकर रक्तपातसे लज्जित अंग्रेज इतिहासकार गवाही देता है-"ये क्रातिकारी अत्यत धीरज तथा शान्तिसे हँसते हँसते मर जाते; हॉ, अंग्रेज जल्लादोंसे आग्रहसे कहते कि फॉसीके फदेमें लटकाकर कुत्तेकी मौतसे मारनेकी अपेक्षा वीरोंके समान हमें तोपसे उडा दो।" असभ्य जगली जाति भी जिसपर लज्जित हो; उस तरीकेसे शूरवीरोंका कल्ले आम अंग्रेजोंने किया । इसपर यह स्पष्ट सम्मति देते हुए भी, कि 'यह काम निःसदेह क्रूरताका था' सब अंग्रेज इतिहासकार शेखी बधारते है कि, " यह तात्कालिक क्रूरता केवल मानवताकी सदाके मगलके हेतु थी।” वाह ! मानवताके मगलमे यह राक्षसी क्रूरता थी! अंग्रेज इतिहासाशो, इस अपने वाक्यको फिर न भूलना! ' घडीभरकी क्रूरता और सदाका मानवताका मगल!' इस वाक्यका सच्चा अर्थ तुम्हे ज्ञात है ? किन्तु, ध्यान रहे, आगे चलकर इस अर्थको भूल न जाना । हो, तो मानवताके मगल की शुभकामनाके हेतु यह बर्बरताका बरताव किया था, तुमने ? बहुत अच्छा । किन्तु तुम जानते हो न, उधर कानपुरका हिंदुवीर नानासाहब है? ' और एक बात कहना आवश्यक है। जो अंग्रेज अथकार क्रांतिकारियोंसे हुई हत्याओंको भडकीले रगमे रंगाने में एक दूसरेसे, मानों, होड लगाते हैं, वेही महाशय, उनके ही देशबधुओंसे किये अक्षम्य और अमानुष अत्याचारों के बारेमें कुछ भी न लिखते हुए जानबूझकर निर्लन मौन रखते हैं! इन अभागे, किन्तु देशप्रेमसे छलकते, सैनिकोंको कत्ल करनेके पहले अंग्रेजोंने उनको और क्या क्या यत्रणाएँ दी होंगी भगवान् जाने ? क्यो कि 'अंग्रेज इतिहासज्ञोंने इस प्रसग ही को इतिहाससे काट दिया; जानबूझकर उसका जिक्र टाल दिया। 'के' स्पष्ट कहता है " अंग्रेज अफसरोंके किये भयकर क्रूर करतूतोका पूरा प्रमाण देनेवाले अनगितन पत्र मेरे पास हैं; 'फिर भी आगे चलकर यह विषयही ससारके सामने न रहे इस लिए एक