पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१८७

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अध्याय ४ था] तथा पजात्र-काण्ड AAPAMMense और सरकारी कर्मचारियोंने इन सिपाहियोंसे सभ्य वर्ताव किया था और सिपाही भी इसके लिए कृतज्ञता प्रदर्शित करते थे, फिरभी इन सबधोंको उन्होंने राष्ट्रीय कार्यके आडे कभी न आने दिया और स्वदेश और स्वाधीनताका बुलावा आनेपर इन्ही सिपाहियोने राष्ट्रकार्यमे अपना सर्वस्व हवन कर दिया। रातही रात, बलवा करनेके पहले फिलौरके सैनिकबधुओको सूचना देनेके लिए एक सवारको भेजा था। जालदरसे इस सवारके पहुँचते ही फिलौरने विद्रोह कर दिया। अब जालदरवाले फिलौर पहुँच जानकी वात रही थी। हो, यह कोई आसान काम नहीं था । क्यो कि, अंग्रेज रिसाले तथा तोपखानेको भुलावा देकर उन्हे निकलना चाहिये था। किन्तु अंग्रेजी सेनामें वह गडवडी और जलदी मची थी, जहाँ क्रांतिकारियोंका कार्यक्रम निश्चित तथा अनुशासनपरक था, जिससे जालंदरखाले सैनिक किसी अशान्तिके बिना फिलौर पहुँच गये । अपने हजारो साथियोंका स्वागत करनेको फिलौरके सैनिक बहुत बडी संख्यामे आगे बढे । एक दूसरेसे गले मिलनेके बाद अपने हिंदी अफसरोंके नेतृत्वमें किन्तु फिर भी अबतक ६६ लोग तहसीलके कच्चे जेलमे ठसे पड़े थे। प्रतिकार होनेकी सम्भावनाको महसूस करते हए भी कूपरने उस जेलके द्वार खोलनेकी आज्ञा दी। किन्तु, आश्चर्य ! कोठरोसे किसी हलचलके चिन्ह न देख पडे ! अंदर ऑकनेपर मालूम हुआ कि ६६मेसे ४५की लाशे जमीनपर फडक रही थीं। कपरको इसका कारण अजात था कि उस कोठरीके सभी अरोखे पक्के बद थे, जिससे वह कोठरी सचमुच काल ठरा (ब्लैक होल) बनी थी। बचे हुए लडखडाते २१को गोलियोंसे . मार दिया गया (१-८-५७) " परने स्वय दायित्व उठाकर किये इस महत्त्वपूर्ण कामपर अज्ञानी दयावान् सज्जनोने बहुत शोर मचाया और घोर निंदा की। किन्तु, रॉबर्ट मॉटगॉमेरीने निश्चयपूर्वक कहा कि कूपरके इस कार्यसे लाहौरकी पलटनोंमे विद्रोहकी भावना फैलनेसे चुक गयी; कूपरका काम बिलकुल ठीक था | होम्सकृत हिस्टरी ऑफ दि इडिरन म्यूटिनी पृ. ३६३