पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१८८

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प्रस्फोट] . १५२ [द्वितीय खड यह सयुक्त सेना दिल्लीको चल पडी । बीचमें एक नदी थी उसके परले काठे इन शूर वीरोंके चरण चूमनेको लुधियाना नगरी तडप रही थी। उसी दिन सवेरे अंग्रेज अधिकारियोंको जालढरके विद्रोहकी खबर तारद्वारा पहॅचायी गयी थी; किन्तु वह उन्हे बडी देरीसे मिली। वहाँ के अफसर महसूस कर रहे थे, कि सिपाहियोंको काबूमें रखना दूभर है। क्यों कि, उन्हे तारसे खबर मिलनेके पहले सिपाहियोंको जालदरवाले अपने साथियोंके निकलनेकी खबर पहुंच चुकी थी। फिलौरसे आनेवाले इस टिड्डीटलको लुधियानेके इस ओर सतलजपर रोके रखनेका चतुर इरादा लुधियानेवाले अग्रेज अफसरोंने किया। और उसके अनुसार पुलको उज्वस्त कर, अंग्रेज, सिक्खों और नामानरेशके सहायक दलोंके साथ, नदी किनारे पहरा भरने लगे। कातिकारियोको यह खबर पहुँच गयी तब ४ मील ऊपर जाकर रातमें उन्होने नदी पार करना शुरू किया !नावोंमें कुछ पार पहुंच पाये थे: कुछ आ रहे थे, कुछ अपनी बारी की राह देख रहे थे तब अंग्रेजों और सिक्खोंने उनपर तोपोंकी बौछार की। रातको लगभग १० बजे कातिगरियोंको गोरे सैनिकोके ठिकानेका पत्ता ही न लगने पाया । ऐसी बॉकी टशामे अंग्रेजों तथा सिक्खोंने तोपो की आडमें धावा बोल दिया। आक्रमणका जुस्सा धीमा पड जानेपर क्रातिकारियोंने रचभी न हटते हुए शत्रुओंपर गोलियोकी वर्षा कर दी। अंग्रेजोके अनपेक्षित हमलेसे सिपाहियोंमें कुछ अस्तव्यस्तता आ गयी थी, फिर भी दो घटोंकी लडाईके बाद अपनी पातको सिपाहियोंने ठीक कर लिया। इतनेमे एक सैनिककी गोली सीधी अंग्रेज सेनापतिकी छातीम घुस गयी और विलियम वहाँ ढेर हो गया। उसी समय आधी रातके घनघोर तम-पटलको चीरकर इन स्वातत्र्योपासकों के सिरपर अपने हिमशीतल ज्योत्स्नारसकी वर्षा करनेके लिए धवल चद्रमा आकाशमे प्रकट हुआ था। इस चादनीमें अंग्रेजोंके सभी डॉवपेच कातिकारियोंके सम्मुख खुल गये; तब उन्होंने गोरोंपर जोरदार धावा बोल दिया। इस प्रखर प्रहारके सामने डटे रहना असम्भव होनेसे अग्रेजसेना तथा उनके निष्ठावान् सिक्ख सैनिकोंने तुरन्त पिछे हटकर अपनी खैर मनायी। अंग्रेजों तथा सिक्खोंकी सयुक्त सेनापर प्राप्त विजयसे उत्साहित होकर क्रातिकारी सिपाही दो पहरतक लुधियाना नगरमें पहुंच गये। यहाँ एक