पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१८९

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अध्याय ४ था] १५३ विष्कम तथा पंजाब-काण्ड मौलवी ' अग्रेजोंकी दासताकी श्रृंखलाको तोडकर स्वराज्यकी स्थापना करो" ' यह मत्र लोगोंको पढा रहा था। मौलवीके प्रचारके कारण लुधियाना पजाबके क्रातिदलका एक महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया था। 'पराधीनताकी बेडियॉपर अब आखिरी प्रहार करनेको आगे बढो' यह सूचना पातेही सरि नगरमे 'जय क्राति की गर्जना गॅज उठी। सरकारी गुदाम लूट, जलाकर भस्मसात् कर दिये गये। गोरोंके गिरजाघर, बंगले, समाचारपत्रके कार्यालय तथा मुद्रणालय-सब कुछ जला दिया गया। अंग्रेजोके मकानो तथा खासकर अंग्रेजोंके सामने दुम हिलाकर पेट पालनेवाले देशी लाचार 'कुत्तोंके निवासोको ठीक बता देनेके लिए वहॉके नागरिक सिपाहियोंके साथ चलनेमें स्पर्धा कर रहे थे । बदिशालाएँ तोड दी गयीं। जो चीज सरकारी या अंग्रेजोंके अधिकारकी मिले उसे जला दिया जाता था! जो बल नहीं सकती थीं उन्हे समतल कर दिया जाता। मतलब, सारी लुधियाना नगरी क्रातिकी ज्वालासे चमक उठी थी। हो, किन्तु क्रातिकारियोंका दिल्ली जाना बहुत आवश्यक था। लुधियानेका किला तो पजाबकी कुजी ही थी और उसपर पूरा कब्जा रखना सनिक दाँवपेचों तथा नैतिक विजयकी दृष्टिसे बडा हितकर साबित होता और दिल्लीके समान लुधियानाभी क्रातिका केन्द्रीय कार्यालय बनता, तो उस अंग्रेजी राजसत्ताको बडा धक्का पहुँचता। सिपाही इन सब बातोंको अच्छीतरह जानते थे, किन्तु उस परिस्थितिको देखते हुए उनका वहाँ हना बड़ा कठिन हो गया था। क्यों कि, वहाँ उनका कोई नेता न था आर वे रहे सीधे सिपाही ! उनके पास गोलाबारूद भी न था। ऐसे बाँके समयम लुधियानेमे नानासाहन्न, खान बहादुर खाँ या मौलवी अहमदशाह जसा कोई नेता होता तो किसीभी दशामे लधियानेको कब्जेमे रखा होता। किन्तु, अब वहाँसे दिल्ली जानेके बिना कोई दूसरा चारा न था। इसीसे, यह नारा लगाते हुए, कि 'स्वाधीन या पराधीन ? इस प्रश्रका उत्तर अब दिल्लीकी किलाबदी देगी वे दिल्लीको चल पडे । अंग्रेजोके तो हाथ पांव फूल गये थे। सिपाही दिनदहाडे दिल्लीका मार्ग तय कर रहे थे, फिर भी उनका पीछा करनेकी सूचना करनेकी हिम्मत भी किसीने न दिखायी। मरठ के बलवेके बाद लगभग तीन सप्ताह तक क्रातिदलमें जो शिथि