पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१९०

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प्रस्फोट] - १५४ [द्वितीय खंड M लता, अवश होनेसे, आ गया थी उससे पूरा लाभ पंजाबके अंग्रेजोंने उठाया। क्यों कि उस समय पजाबमे अंग्रेजोंकी प्रबल सेना होनेसे सिपाहियोंसे हथियार डलवाना या कठिन स्थल-काल-स्थितिमें विद्रोह करनेको मजबूर करना अंग्रेजोंके लिए आसान हो गया। यह देखकर, कि सिक्ख नरेश तथा "उनकी रियाया क्रातिकारियोका साथ न देकर अपनी सहायता कर रही है, पजाबके सभी भारतीयोंको सीमाप्रान्तसे अंग्रेजोने भगा दिया और उस दिशामे क्रांतिका बीज व्यर्थ कर डाला। इस समय, न केवल 'सिपाहियोंको, बल्कि देहातियों, हजारो सभ्य तथा प्रतिष्ठित भारतवासियोको मात्र अफसरोंकी सनकपर ही सीमापार किया गया। इस प्रकार सब पंजाब निरापद हो गया तब दिल्ली की दिशामें गोरी सेनाको बड़ी मात्रामे भेजा जाने लगा। पजाब अग्रेजके अधीन क्यों रहा ? इसके दो कारण है । एक सिक्खोने उनकी अनमोल सहायता की । सिक्ख यदि तटस्थ रहते तो अग्रेज एक दिनके लिए भी पजाबका अपने हाथमें न रख पाते ! ऐसे तो क्रातिकारियोंने भी सिक्खोको अपनी ओर कर लेनेके लिए अनथक जतन किये थे। दिल्लीके स्वतत्र होते ही सम्राटके एक विश्वासपात्र सेवकने पजाबके उस समयकी गतिविधिका चित्र खडा कर देनेवाला बड़ा लम्बा, ब्योरेवार तथा आकर्षक पत्र भेजा था। इस पत्रमे यह विश्वासी ताजुद्दीन लिखता है “पजाबके सभी सिक्स सरदार आलसू तथा कायर होनेसे कातिदलमे उनका आ जाना असम्भव-सा है। वे फिरगीके इशारोंपर नाचते हैं। मैंने स्वय उनसे अलग अलग, बातचीत की और मेरा दिल निकालकर उनके सामने रखा। मैने स्पष्ट पूछा 'तुम लोग फिरगीके पक्षमें होकर स्वराज्य और स्वदेशके द्रोही क्यों बनते हो क्या, तुम स्वराज्यमें अधिक सुखचैनसे न रहोगे ? और तो और, तुम्हारे स्वार्थके लिए ही सही तुम्हें दिल्लीके सम्राटके पक्षमें रहना चाहिये।" उन्होंने कहा "देखोजी हम मौका देख रहे है।' सम्राटसे आज्ञा पातेही हम एक दिन में इन फिरगियों का सफाया कर देंगे। मेरी रायमें ये सभी लोग भरोसा करनेको सर्वथा अपात्र है । " और हुआ भी वैसा ही। जब सिक्ख नरेशोके पास बादशाही खरीता लेकर सवार पहुँचे तो उन्होंने सीधे उन्हें कल कर डाला और इस तरह अंग्रेजोको पजाब अपने पजेमें रखना इतना आसान