पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१९१

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क्यो हुआ इसका यही पहला तथा महत्वपूर्ण कारण है।फिर भी हम कह सकते है कि सिक्खोंके इस विरोधका मुकाबला कर अंगऱेज़ोंको पजाबसे निकालना असम्मव न था । मई महीनेमें अंग्रेजोमे जो भी दीलापन, क्रातिके अचानक घडाकेसे घत्ररा जानेके कारण, आ गया था, उससे लाम उठाकर तथा निश्र्चित कार्यक्रमके अनुसार, एकही समयमें, सत्र और से वलवे की आग पजाबमे भडक उठती तो सिक्खोंको भी उस धाकसे क्रातिदलमें शामिल होना पडता; क्रमसेकम उनमें फूट तो न पडती तथा हजारों सिपाहियोंको अलग अलाग गॉठ कर उन्हे कुचलनेका अवसर अंग्रेजोंके हाथ न लगता। यह कथन, कि पजाबमे स्वराज्य की लगन न थी, बिलकुल टिक नहीं सकता । थानेसर के विव्दान् ब्राह्मण, लुधियानेके मौलवी, फीरोज़पुरके दूकानदार एव पेशावरके पठान सभी हर गॉवमे जाकर स्वधर्म ओर स्वराज्के लिए लडे जानेवाले इस पवित्र युद्धका प्रचार करते थे । उप र्युक्त ताजुह्दीन लिखता है, " यदि सम्राट्की ओरसे कोई सेनापति सेनामे आ जाय तो पजाब एक दिनमे स्वतत्र हो जायगा । हर स्थानके सिपाही बलबा कर सम्राट्के झण्डेके नीचे खडे हो जायॅगे और अंग्रेजो की जी बचाना भारी हो जायगा । मुझे विश्र्वास है कि हिदु और मुसलमान दोनों आपके सिहासनको वदना करेंगे । ओर क्रातिका उत्थान जूनमें होगा तो और अच्छा रहेगा । क्यो कि जेठकी, चिलचिलाती धूपमें लडनेमे तो अंग्रेज़ो सोजरोंकी नानी मर जाती है। तलवार की चोटके पहले जलते सूरजकी प्रखर किरणों ही से वे तुरन्त मर जायॅगे । इस पत्रको देखते ही एक सरदारके मातहत कुछ सेना मेजियेगा। " इस तरह पजाबी जनता का मन दिल्लीकी और होते हुए भी क्रातिकारी उससे लाभ उठा न सके। इसका एक मात्र कारण है, दिल्ली स्वतंत्र होनेके बाद तीन सप्ताह तक क्रातिकी लहरही रोकी गई थी । यदि निश्र्तित कार्यक्रमके अनुसार सब जगह एक साथ विद्रोह होता तो अंग्रेज इधर उधर कुछ न कर सकते। पजाबमें अकेली पडी निर्बल पलटनोंसे कभी हथियार न डलवा सकते; क्रातिकी लहर और ऊची उठती और हिचकिचाते तथा किनारों कसाते सिक्खों जैसे लोग उस सैलावमें बह जाते; क्रातिके ऐसे व्रैभवशाली और यशस्वी प्रारंभसे चौधिया कर अबतक, क्रांतिसे सहानुमूति रखने पश्मी