पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१९४

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NA Vya अध्याय ५ वॉ अलीगढ तथा नसीराबाद उत्तर-पश्चिमी प्रात, अंबाला, पजाबके अन्यस्थान जिस तरह क्रांतिके प्रचड धमाकेसे थरी उठे थे, उसी तरह दिल्लीके दक्षिणका भी एक प्रात इस धमाकेसे उत्पन्न लहरियोंसे हिल रहा था। दिल्ली के दक्षिणमे अलीगढ ९वीं हिंदी पैदल पलटनकी छावनी थी। इस पलटनकी कुछ कपनियों मैनपुरी, इटावा तथा बोलदमे थीं। अंग्रेजोंको इन कपनियोंपर पूरेपूर भरोसा था। भारतभरके सिपाहियों के विद्रोह करनेपर भी इन कंपनियोंके सैनिक बलवा नहीं करेगे यह वे दावेसे कहते थे । यद्यपि बोलदके बाजारमे गुप्त क्रातिकारी सस्थाओंका दौरटौरा होनेकी खबरें सैनिक अधिकारियोंको मिल जाती, फिर भी ९ वीं पलटन की राजनिष्ठापर पूरा भरोसा रखकर," उस भ्रममें वे बेखबर सोते रहे | मई महीनेके प्रारंभमें, बोलदके आसपासके गॉवोने एक वंदनीय, सत्यप्रिय तथा स्वातंत्र्यभक्त ब्राह्मणको चुनकर उसे बोलदकी ओर भेजा। लम्बे डग भरते हुए यह ब्राह्मण जा रहा था किन्तु बोलदकी छावनीम होनेवाली सफलताको सदेहके हिंदोलेपर चढी हुई देखता, तो कभी उसे आशाके पांखोंपर बैठ स्वतंत्र सैर करती देखता, इन परस्परविरोधी भावोंसे उसका हृदय बोझल हुआ था। जहॉ अग्रेजोंको बोलदके सैनिकोंपर अनहद विश्वास था, वहाँ मातृभूमि इन्ही सैनिकोसे बहुत कुछ आशा करती थी।" ये सैनिक मेरे देशवधु है, मातृभूमिको उबारने और स्वधर्मकी रक्षा