पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१९५

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अध्याय ५ वाॅ ] १५९ [अलीगद तथा नसीरावाद

करनेके लिए उठनेकी मेरी वातपर कान नहीं धरेंगे? स्वराज्यके स्वर्गीय वातावरणमें विहार करनेकी क्षमता वाले इनके विचारोंकी पाखं पुख्ता है? भविध्यकी मेरी आशाको ठुकराकर क्या ये फिरसे उस गधे काले भीपण पराधीनताके नशेमे चूर आलोदते रहेंगे? आगामी वैभवशाली धशयको इनके सामने खोलने मौ जा रहा हॅू, किन्तु कहीं ये सैनिक, उनके नशाको तोड ढेनेके अपराधमं, मुझे ढण्ड देनेके लिए अपनेही देशत्रधुओपर हथियार तो नही उठाऍगे?" इस प्रकारकी विपण्ण भावनाऍ अतःकरणमे उमड पडती थीं तो भी जिसके मुखपर शान्तिका अनोखा तेज लहरा रहा था, वह व्रहाण कातिके महान सदेशको लेकर छावनीमे चला गया। वहॉ उसकी अच्छी आवभगत हुई, उसका दिव्य कति-सदेश सुननेमे बडी आस्थप्रकट हुई। बलवे का कार्यक्रम बताते हुए व्राहाणने कहा, किसी व्याहकी धूमधामका मौका देखकर बलवा किया जाय; वहॉके अप्रजो को कत्ल कर सीधे दिल्लीका मार्ग लिया जाय। अग्रेजी शासनका अन्त करनेके बारेमे सबकी एक राय होते हुए भी प्रस्ताचित कार्यक्रमको अमलमे लानेके विपयपर चर्चा छिडी। दुर्माग्यवश, उसी समय कपनीके तीन सिपाहियो द्वारा यह बात माल्म हो जानेसे उस व्राहाणाको बदी बनाया गया और उसे बोलदकी पलटनके केन्द्रमें न्याने अलीगढको मेज दिय गया। वहॉ उसे सैनिकों के समक्ष फॉसीकी सजा सुनाई गई। इधर बोलदके तीन राजनिष्ठ इमानदार सिपाहियोंकी मिट्टी पलीत कर गालियॉ देकर निकाल बाहर कर दिया गय। और बोलदके सभी सैनिक, अपने मुख्यधिकारीसे आज्ञा न लेते हुए, असलमे उन्हें लाखो गालियॉ गिनते हुए, उस काति - सदेश - दाता व्रहाणके यहॉ, अलीगदको, आ धमके। २० मई सायकलको व्रहाण फॉंसी पर लटकनेवाला था। अग्रजों की आज्ञा थी, कि सभी सैनिकोंको वहॉ उपस्थित रहना चाहिये। अब इसका क्या एलाज किया जाय? ३२ मैईतक यदि सिपही चुप बैठते है तो यहॉ व्रहाण फॉंसीके रास्ते स्वर्ग सिधार जायगा। इस उघेडबुनमं ही सिपही रह गये और उधर ऊपर उस व्रहाणकी आत्मा स्वर्गके मार्गपर चलती हुई दिखती पडी। और नीचे वधमंचपर उसका जड शरीर, प्रतिशोध का भयकर तथा वक्तृतापूर्ण सदेश देते हुए, लटक रह था। क्या ही ओजपूर्ण वक्तृता थी! वह धारवाही शब्दके सोतेके बदले वहॉ