पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१९६

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प्रस्फोट] [द्वितीय खङ 'लहूकी बिंदुओकी धारा बह रही थी। ध्वनि महसे निकलती नहीं थी। ऐसी प्रभावी वक्तृता, वधमचपर मरे हुए ब्राह्मणके मुखसे उसके जीते जी कमी न निकली होगी। क्यो कि, एक क्षणमे उन सैनिकोंसे एक सिपाही आगे आया और अपनी तलवारसे उस कलेवरको चीन्हते हए बोला " मित्रो। देखते हो यह हुतात्मा खूनसे कैसा नहाया है!" इस पर सिपाही के मेहसे निकला यह शब्द-तीर उपस्थित हजारो सैनिकोंके अंतस्तलम। गहरा धुसा । बारुदके अवारपर पड़ी चिनगारीसे प्रस्फोट होने की क्रिया भी इसके सामने कुछ मद-सी मालूम होती थी। और उन्होंने अपनी तलवारे उठायीं, क्रोधसे वे पागल हो उठे और उस धुनमें चिल्ला उठे 'फिरंगी राज का अन्त करो। इस भयकर ताण्डवको देख अंग्रेज अधिकारियोंका कलेजा मुंहमें आ गया हो तो क्या आश्चर्य १ ९वी पलटनके सबसे अधिक राजनिष्ठ सैनिक केवल उठेही न थे, वे साफ साफ कह रहे. थे, कि " यदि अंग्रेज अपनी जानसे हाथ धोना न चाहते हों तो वे तुरन्त अलीगढ छोडकर चले जायें"। इस उदारतासे लाभ उठाकर सब अग्रेज अफसर, उनके परिवार तथा सपरिवार अन्य गोरे तथा श्रीमती औटेंम भी चुपचाप अलीगढसे रवाना हुए। आधी रातमे अलीगढमें अग्रेजी सत्ताका कोई चिन्ह न रहा । २२ मईकी शाम को अलीगढ स्वतत्र होनेकी खबर मैनपुरी पहुंची। हम कह चुके है कि ९ वी पलटनकी एक कपनी वहाँ भी थी। अलीगढके अनावसे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मैनपुरीके उन्हीके भाइयोंमें क्या विचार काम कर रहे थे। मैनपुरीके अग्रेज अधिकारियोंको -खबर मिली कि कोई राजनाथ सिग, जो अग्रेजोंके विरुद्ध मेरठमें लडा था, जीवती गॉवमे पहुँचा है । इसलिए उन्होंने कुछ सिपाहियोंको उसे गिरफ्तार करने भेजा। किन्तु इन सिपाहियोंने उसे पकडनेके बदले उसे जीवतीसे सुरक्षित बाहर भेज दिया और 'साबको रपट दी कि उस नाम का कोई आदमी वहाँ नहीं रहता । रामदीनसिग नामक सिपाहीको अंग्रेजोंने अनुशासनभगके अपराधमे, सशस्त्र सैनिकोंके कब्जेमे अलीगढ भेजा था। जब आधे रास्तेपर पहुंचे तो पहरेदारोंने उसकी वेडियों तोड