पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१९९

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अध्याय ५.वा] १६१ [अलीगढ़ तथा नसीराबाद दी और उसे जाने देकर चुपचाप मैनपुरी लौट पडे। यह ऊँचे दर्जेके देशभक्त सैनिक केवल निश्चित इशारेकी राह देख रहे थे। किन्तु इसकी खबर अंग्रेजोको • पहुँचकर कही वे एकसाथ विद्रोह करनेके पहले उन्हें अपाहिज न बना डालें, इसलिए बाहरसे वे इतने गान्त थे कि भारतभरमे सबसे अधिक राजनिष्ठ होनेका प्रमाणपत्र अंग्रेजोंने उन्हें दे दिया था। किन्तु उस ब्राह्मणके दौरेसे केवल सिपाही ही नहीं अलीगढ तहसील की प्रजा भी क्रोधसे भडक उठी थी। इस कपनीको तहसीलकी बढती अगान्ति दवा देने के लिये ही मैनपुरी भेजा गया था। जब वह अलीगढ लौटी तब वहाँके कसाई और खानाबदोश भी बाजारमें सैनिकोंसे पूछते “ फिरगीका फैसला कब करोंगे? स्वाधीनताके लिए कब बलवा करोगे ?” जिसे कसाई और गुडे भी करनेको उतावले हो रहे हो उस कामको स्थगित रखना कैसे हो सकता था ? अलीगढ स्वतत्र हो जानेकी खबर पाते ही मैनपुरी भी उसी दिन उठा। वहॉके कातिकारियों ने भी उनके हाथ लगे अंग्रेजोंको प्राणदान देकर अनगिनत गोलाबारूद और शस्त्र हथिया कर ऊँटपर लाद दिये और २३ मईको दिल्ली चल पडे। इसी समय इटावेके किलेमें भी उसी तरह की हलचल हो रही थी। इयवेका कलेक्टर तथा प्रमुख मॅजिस्टेट अलन् ओ रामको मेरठ का सवाद मिला, तब उसने अपने मातहत सहायक मजिस्टेट डॅनियल की सहायतासे वावक इदगिर्दक मार्गोकी सुरक्षा साधने के लिए चुनिदे लोगोका एक दल बनाया । १९ मईको मेरठसे आये मठीभर सैनिकोसे इस दलकी मुटभेड हुई । ठीक ही था, कि मेरठके सिपाही घेरे गये; उन्हे हथियार डाल देनेकी आता हुई। इस आज्ञापर अमल करने का नाटक उन्होंने बडी खूबीसे किया और एक साथ हथियार उठा कर उन्हे घेरनेवालोंके टुकडे टुकडे कर डाले। यह सवाद सब जगह फैल जाय, इसके पहले मेरठवाले सिपाही अपने शस्त्रास्त्रोंके सहित एक हिदु मदिरमे जा छिपे । इटावेके कलेक्टर हमको जब पता चला तत्र डॅनियलके साथ कुछ हिंदी सैनिकोंको लेकर उस मदिरपर हमला करनेको वह चल पडा। घुमको विश्वास था कि छोटी सैनिक टकडीके साथ वहाँ पहुँचने के पहलेही गाववालान उन मुठ्ठीभर सैनिकोंका कचबर निकाला होगा। किन्तु मदिरके