पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२००

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१६२ [द्वितीय खंड पास पहुँचनेपर देखता क्या है, कि गाँववाले उन्हें मार डालनेके बदले उनकी बहादरीकी प्रशसाके पुल बांध रहे हैं और उन्हें रसद पहुंचा रहे हैं ! गॉववालोंने यह निमकहरामी की; पर्वाह नहीं हमारे सिपाही और पुलीस तो अब कटिबद्ध होंगे-डॅनियलने सोचा। उसने उन्हें जोरदार हमला उस मदिरपर करनेकी आज्ञा दी और स्वय आगे बढा। किन्तु उसके पृष्ठपोषक कौन है ? हॉ, एक मात्र एक-सिपाही उसकी आना मानकर चला ! इस गोरे ,अफसर तथा उसके 'काले' दासको मदिरके सैनिकोंकी बदकोंने कबका भुन डाला और गरजते हुए आये हमसाब मदिरवाले सिपाहियोको वहीं छोड सिरपर पैर रख कर भाग गये। ___ मई १९ को, इटावेकी सेनाके विद्रोहकी एक जोरदार अफवाह उठी थी । किन्तु क्रातिदलका प्रमुख केन्द्र अलीगढ होनेके कारण वहॉसे सूचना मिलनेतक इटावेके सैनिक चुप रहे ! ओर मई ३१ तक इसे वह निबाहते भी; किन्तु उस ब्राह्मण हुतात्माके लहूने क्रांतिकी ज्योति अचानक जला दी। २२ मईको अलीगढके बलवा करनेका सवाद पहुँचतें ही इटावेमें विद्रोह हुआ। इस भीषण स्थितिमें अंग्रेज अपने बालबच्चोंके साथ जहाँ रास्ता मिले वहाँ भागे । स्वयं हम महाशय भी, केवल सिपाहियोंकी हिंदी उदारतासे हिदी महिलाके वेशमें भाग सके । * जब हयूम के भागनेकी खबर मिली तब इटावा स्वतत्र होनेका समाचार दिढोरा पीटकर घोषित किया गया और उसके बाद वहाके सब सैनिक दिल्लीको जानेवाली अपनी पलटनमें मिल जानेके लिए मार्गस्थ हुए। इस तरह सारी पलटन एकसाथ उठी । अलीगढ, बोलद, मैनपुरी, इटावा आदि बिलकुल दूरके स्थानोंमें भी खजाना लूटना, स्वातत्यकी घोषणा करना शरणमे आये अग्रेजोंको प्राणदान देना और गोलावारूद, शस्त्रास्त्र तथा अन्य रसटको जमाकर दिल्लीकी ओर चले जाना आदि कार्यक्रम अत्यत अनुशासन पूर्वक तथा पूरी तरह सपन्न किया गया। अग्रेज जिन पलटनोंको सबके अन्तरे विद्रोही बननेकी सम्भावना मानते थे वही सबसे पहले बलवा कर मुक्त है गयीं ! सो किसी, भी परिस्थितिमें अग्रेजोको शान्ति का विश्वास न रहा।

  • रेड पॅम्पलेट खण्ड २, पृ. ७०