पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२०१

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अध्याय ५ वा] १६३ [अलीगढ तथा नसीराबाद __ अजमेरसे १२ मैल्पर नसीराबाद एक गाँव है। वहाँ एक गोरी पलदन, ३० वी हिंदी पैदल सेना तथा तोपखाना इतना सेनासंभार था। इसी गॉवमे मेरठसे अभी अभी लायी हुई बम्बईके भालाबरदारोकी पहली पलटन तथा १५ वी पलटन भी वहाँ थीं। इस आखरी पलटनमें अंग्रेजो का द्वेष तथा उन्हे भारतसे बाहर भगा देनेकी भावना बहुत गहरे होते जा रहे थे। मेरठके हजारो राजनैतिक प्रचारकोने मेरठकी क्रातिसस्थाके सभी प्रस्ताव नसीराबाद के सिपाहियोंको स्वय आकर समझा देनेका अवसर खो दिया होता तो वह एक अचरजकी गत होती। बम्बईके भालाबरदारों को छोड अन्य सभी सैनिकोकी एक राय थी। सभी ठीक मौकेकी ताकमें थे। उन्हें २८ मईको यह अवसर मिला । क्यों कि, उसी दिन तोपखानेके सनिकविभागमें काफी दिलाई उन्हें दीख पड़ी। इस लिए इशारा पातेही मेरठकी १५ वी पलटनने बलवाकर तोपखानेपर कब्जा जमा लिया । उसको वापस लेने के लिए गोरे अफसर और बम्बई भागबरदारोंमें से कुछ सैनिक टूट पड़े; किन्तु थोडेही समयमें भालाबरदार समझदारीसे लौट पड़े और अग्रेज अधिकारी वहीं ढेर हुए। न्यूबरीकी तो धज्जियाँ उडीं। कर्नल पेनी और क. पाटिस्युड दोनों मारे गये। जब गॉव हाथमे रहनेका सदेह हुआ तो अंग्रेज लोग बियासको भाग गये। क्रातिकारियोंने खजानोपर दखल किया और सर्वसम्मतिसे चुने सेनापतिने सम्राटके नामसे सैनिकोको वीर-पारितोषिक बॉट दिये। अंग्रेजोंके घरबार जलाये गये। फिर हजारों सिपाहियोंकी सेना रणगीतोंको तालपर गाते और अपने शस्त्रास्त्र उछालते दिल्लीकी ओर चल पडे। ANXIEI SIR