पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२०४

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प्रस्फोट] [द्वितीय खंड wr करते थे; अपने काम ठीक तरह सपन्न करते थे। कुछ दिन पहले मेरठवाले कातिकरियोंसे लगभग सौ सिपाही गुप्तरूपसे इस छावनीम आ बसे, . और मेरठका सब किस्सा ब्योरेवार बता कर तथा सैनिकों में क्रांतिभावको उभाडकर चल दिये। फिरभी ऊपरसे सैनिकोंने सपूर्ण शान्तिका पालन किया था। यहॉतक कि कुछ स्वेदारोंने तो अपना टव्यर ले आनेकी अनुजा अंग्रेज अफसरोंसे मॉगी। किन्तु इस प्रार्थनाका निर्णय होनेके पहलेही मई २९ को अफवाह उडी कि " नदीपर नहाते समय सवेरे सिपाहियोंने यह शपथ की है कि दो बजनेके पहले अंग्रेजोंको काट डालेंगे।" अंग्रेजोने तुरन्त अपने राजनिष्ठ रिसालेको सिद्ध किया। रिसालेके सिपाहियोंन रच भी आनाकानी न की । दिन डूबने आया फिर भी विद्रोहका कोई चिन्ह दिखायी न पडा; तब अंग्रेज अफसर शान्तिसे सोनेको घर लौटे । हा, अफवाह भलेही झूठी निकली, रिसाला तो दगा करेगा नहीं, उन्होने जाते जाते कहा। ठीक इसी समय अत्यत प्रामाणिक समाचार उनके पास पहुँचा कि "अपने भाइयोंके विरुद्ध हथियार उठाएँगे नहीं और अग्रेजोंकी सहायता करेगे नहीं' इस प्रकारकी सौगध रिसालेके सैनिक ले चुके है। अत्र अंग्रेजोके काटो तो खून नहीं ! किसका विश्वास करें ? इस दशामें दिनांक २९के साथ ३० मई भी शान्तिसे गुजर गया। और खासकर ३० के दिन तो सिपाहियोका बर्ताव इतना अच्छा, अरे, इतना 'राजनिष्ठ' था, जिमसे मुलकी तथा सैनिक गोरोंने मनही मन ठान ली कि न अब किसी प्रकार धोखा ' होगा, न डरका कोई कारण है! ३१ मईको सवेरा हुआ। सवेरे सवेरे कॅप्टन ब्राउनलो का बगला जला। फिरभी अंग्रेज मानते रहे कि कोई डरावनी बात नहीं हुई। इस दिन इतवार था। साप्ताहिक सैनिक सचलन बेखटके पूरा हुआ। और हिंदी अफसरोंने बाकायदा अपनी रपटे' (रिपोर्टस् ) पेश कीं। उस दिन तो सिपाही अधिक अनुशासनपूर्वक तथा शान्तिसे काम करते हुए अंग्रेज अधिकारियोंने देखा। गिरजाघरमें जाकर गोरोंने अपनी प्रार्थनाएँ भी पूरी की। मतलब, सूरजदेवके सामने किसी प्रकारका कोई उत्पात न हुआ। घडीने रातके ११बजाये और छावनीसे तोपोंकी गडगडाहट सुनायी दी। उसके वातावरणमें विलीन होनेके पहले ही राइफलों तथा संगीनोंकी खन