पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२०५

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अध्याय ६ वा] १६७ [रुहेलखण्ड , खनाहट तथा कानके परदे फाडनेवाले पुकारसे आकाश गूंज उठा। बरेलीका बलवा इतनी बारीकीसे रचा गया था, जिसमे यह भी मुकर्रर था कौन किस गोरेको चलता करे। ११वजे ६८वी कपनी छावनीके अंग्रेजोपर टूट पडी। ब्रिगेडियर सित्राल्ड पहलीही दगलमे हना गया । कॅ. कित्री, ले. परेज़र, सार्जेट वॉल्टन, कर्नल टप, कॅ. रॉबर्टसन तथा इनके साथ क्रातिकारियोंके हाथ लगे गोरे मार डाले गये। हॉ, ३२ गोरे इस हत्याकाण्डमे अचकर नैनिताल पहुंच पाये। इस तरह केवल छ घटोंमें बरेलीसे अंग्रेजोका राज उठ गया। यूनियन जॅकको नीचे खींचकर स्वातत्र्यका झण्डा जब बरेलीमें चढाया गया तब तोपखानेके सूवेदार बख्तखॉन सेनाका आधिपत्य स्वीकार किया। दिल्लीके घेरेके समय इस बखतखाका बारबार जिक्र करना पडेगाही। उसने सिपाहियोके जमघटके सामने इस विषयपर अत्यत उत्साहवर्धक भाषण किया, कि स्वाधीनता प्राप्त होने के बाद सिपाहियोको कैसा बरताव रखना चाहिये तथा स्वराज्य प्रस्थापित करनेके बाद उसे बनाय रखनेके लिए किन दायित्वपूर्ण कर्तव्योका भार उठाना पड़ता है। इसके बाट यह स्वदेशी ब्रिगेडियर गोरे ब्रिगेडियरकी गाडीमें सवार हो कर शहरभरमे पूमा। उसके पीछे उसके मातहत नये नियुक्त हिंदी अधिकारी, उन उन श्रेणिके अंग्रेज अफसरोंकी गाडियोंमें बैठे जा रहे थे । सम्राट्के प्रतिनिधिके रूपमे सारे रुहेलखण्डके अधिपतिके नाते खानबहादुर खाँ का गौरव जनताने. जयस्वनिसे किया । बरेलीके गोरोंके घरबार पहलेही जलाये जा चुके थे । खान बहादुरने उन अग्रेजोंको अपने सामने पेश करनेकी आजा दा, जो बदी बनाये गये थे। खान पहले अग्रेजी शासनकालमें न्यायाध्यक्षका काम कर चुका था, जिससे अंग्रेजोके दण्डविधान (पीनलकोड) से वह अच्छी तरह परिचित था। इसीसे इन अंग्रेज अभियुक्तोके मुकदमे में पचायत (जूरी) बुलायी गयी। अभियुक्तोमे उत्तर-पच्छिम सीमाप्रतिके पटनट गवनरका दामाद एक डॉक्टर, बरेलीके सरकारी महाविद्यालय (कालेज ) का प्राचार्य (प्रिन्सिपल) तथा बरेलीका सबसे बड़ा न्याया __ * चार्लस बॉल कृत इडियन म्यूटिनी खण्ड १.